जागो तुम, किसी की चेतना में,
सो जाना फिर,
खो जाना,
उसी की वेदना में!
यूं, आसां कहां, जगह पाना!
चेतना में, किसी की सदा रह जाना,
मन अचेतन,
न जाने, देखे कौन सा दर्पण!
कब कहां, करे, खुद को अर्पण!
किसी की चेतना मे!
यूं वेदना की तपती धरा पर,
सिमट कर, धूप सेकती है, चेतना!
सिसक कर,
सन्ताप में, दम तोड़ती कब!
मन भटकता, धूंध के पार, तब,
किसी की चेतना मे!
सो लो तुम, किसी की वेदना में,
जाग लेना फिर,
खो जाना,
उसी की चेतना में!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)