अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को शत-शत नमन।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी जंग को कुछ यूँ बयाँ किया था,
उसे यह फ़िक्र है हरदम : भगत सिंह (मार्च 1931)
उसे यह फ़िक्र है हरदम,
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
रहे रहे न रहे।
रचनाकाल: मार्च 19319
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी जंग को कुछ यूँ बयाँ किया था,
उसे यह फ़िक्र है हरदम : भगत सिंह (मार्च 1931)
उसे यह फ़िक्र है हरदम,
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
रहे रहे न रहे।
रचनाकाल: मार्च 19319