छलकी क्यूं बदरी,
इक बूंद गिरी, या दुःख की जलधि!
समझ सके ना हम!
भीगे सब पात, यूं जागी रात,
हुई सजल, हर बात,
क्या उपवन, क्या मरुवन सा ये आंगन!
नैन भिगोए, क्यूं दुल्हन!
कह ना सके हम!
अंतः थामे बरखा संग बिजली,
गोद लिए, चंचल बदरी,
भर लाते, मन के अन्दर, सागर कितने,
अंसुवन के, गागर कितने,
कह ना सके हम!
फैलाए, अंधियारा इक दामन,
गहराते, वो काले घन,
घबराते, या, छम-छम गीत कोई गाते,
व्याकुल, बदरा ही जाने,
कह ना सके हम!
छलकी क्यूं बदरी,
इक बूंद गिरी, या दुःख की जलधि!
समझ सके ना हम!
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