Showing posts with label चराग. Show all posts
Showing posts with label चराग. Show all posts

Thursday, 31 May 2018

चराग

कई चराग बुझते रहे, पुरकशिश रात के साथ!

यूं तो रौशनी भरते रहे, वो सारी रात,
अंधेरों संग अकेले, लड़ते रहे वो सारी रात,
तप्त तेल संग, तलते रहे अंग-अंग,
पर, ये तंज अंधेरे, कसते रहे असह्य व्यंग,
कालिख चराग की, कह गई थी ये बात.....

कई चराग बुझते रहे, पुरकशिश रात के साथ!

दिल में ही थी जली, दिल की बात,
बुझ गए जलते हुए, खुद ही वो चराग,
जल चुके थे, पतंगे कई साथ-साथ,
जल चुकी थी प्रीत, और जले थे जज्बात,
रात के दामन में, मिट गए थे ये चराग.....

कई चराग बुझते रहे, पुरकशिश रात के साथ!

युं धू-धू कर जले, चरागों के ख्वाब,
ज्यूं चिंता में, भस्म हुए हों मरने के बाद,
मन में लिए, कुछ अनकही सी बात,
चिताओं सी दहकती, वो जलती सी रात,
बंद पलकों तले, ढ़ल गई वो भी साथ......

कई चराग बुझते रहे, पुरकशिश रात के साथ!

Monday, 15 February 2016

बिखरी जुल्फे

अगर वो कहें तो उनकी बिखरी लटे मैं सँवार दूँ,
झुकी हुई सी यें पलकें,जरा इनको निहार लूँ,
मद्धिम पड़ रही है चांदनी, रौशन चराग कर लूँ।

रूप उस साँवरी का अभी, जी भर के देखा नही,
अंधेरों मे अब जिन्दगी ढलती जा रही यूँहीं,
चेहरे से जुल्फें हटा दूँ, रातो मे रौशनी भर लूँ।

जज्बातों की आँधियाँ उठ रही हैं यहाँ अभी,
मुझको संभाल लो, मैं आज वश में नही,
चेहरों से उठा दूँ नकाब, रौशन अरमान कर लूँ।

पत्ते डालियों के है हरे, सूखे अभी तक ये नही,
चढ़ान पर उम्र है जिन्दगी अभी रुकी नही,
निहारता रहूँ तेरा चेहरा, संग तमाम उम्र चल लूँ।