Saturday, 31 December 2016

गतवर्ष-नववर्ष

बीत चला है अब गतवर्ष,
कितने ही मिश्रित अनुभव देकर,
आश-निराश के पल कितने ही,
ले चला वो दामन में अपनी समेटकर।

जा रहा वो हमसे दूर कही,
फिर ना वापस आने को,
याद दिलाएगा हरपल अपनी वो,
बीते लम्हों की भीनी सी सौगातें देकर।

रुनझुन करती आई थी वो,
पहलू में हर जीवन के संग खेली वो,
कहीं रंगोली तो कहीं ठिठोली,
कितने ही रंगों संग हो ली वो हँसकर।

सपने कितने ही टूटते देखे उसने,
अपनों का संग कितने ही छूटते देखे उसने,
पर निराश हुआ ना पलभर को भी वो,
नवजीवन ले झूमा फिर वो आशा की थुन पर।

अब गले लगाकर नववर्ष का,
सहर्ष स्वागत कर रहा है गतवर्ष,
विदाई की वेला में झूम रहा वो,
कितने ही नव अरमानों को जन्म देकर।

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