झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!
कटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
बोए तूने, इतने काँटे,
फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
जा, अब याद मुझे न आ,
जा, अप्रिल तू जा!
दूभर है, तुझ संग ये दिन निभ जाए,
बैरी ये पल कट जाए,
हर क्षण, कितने धोखे हमने खाए,
ना, अब सपनों में बहला,
जा, अप्रिल तू जा!
तू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
यूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!
झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीया। ।।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 02 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीया। ।।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सादर प्रणाम सर 🙏
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०१-०५ -२०२१) को 'सुधरेंगे फिर हाल'(चर्चा अंक-४०५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
विनम्र आभार
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ReplyDeleteतू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
यूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!..अन्तर्मन की व्यथा कहती हुई उत्कृष्ट रचना ।
विनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteअभी तो अप्रैल के साथ मई में भी ऐसा ही डर बना हुआ है । सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया संगीता जी। भविष्य की आशा ही, जीने की चाहत पैदा कर पाएगी।
Deleteअप्रैल से तो विदा ले ली पर अभी मई शेष है
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अनीता जी। सुखद भविष्य की आशा तो करनी ही पड़ेगी हमें।
Deleteशब्द-शब्द में अंतर्भेदी चुभन । टीस उठाती हुई ....
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अमृता तन्मय जी।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteसच में सर इस साल अप्रैल का महीना अभी तक मेरे जीवन का सबसे कठिन समय था।
ReplyDeleteबिलकुल, प्रीति जी। पर मेरा मानना है कि समय को करवट लेते भी देर नहीं लगती है।
Deleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ। ।।।
स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।
बहुत ही कठिन रचना और शायद अपनी पहचान आप आदरणीय पुरुषोत्तम जी। अप्रैल के माह को अंग्रेजी साहित्य में निर्दयी माह कहा गया है पर अब भी अप्रैल बहुत दर्दनाक यादें देककर रुखसत हुआ है सो इसे फटकार और दुत्कार जायज़ है। व्यथित कवि मन की असीम पीड़ा छलकी है रचना में! भावपूर्ण रचना के लिए बधाई। अपना ख्याल रखें। सपरिवार सानंद , सकुशल रहें 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteजी, बिल्कुल। आप भी अपना और समस्त परिवार का ख्याल रखें।
Deleteतु, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
ReplyDeleteयूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!
झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!
👌👌👌👌🙏🙏
विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।
Deleteआदरणीय सर, बहुत ही मार्मिक और करुण रचना । अप्रैल के महीने के बहाने, इस नव-वर्ष में कोरोना के लौट आने से जो निराश और दुख जन-जन के मन में है , उसे बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है पर आशा है की इस वर्ष जैसे जैसे समय बीतेगा, यह कोरोना भागता हुआ नजर आएगा । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
ReplyDeleteसुंदर टिप्पणी हेतु धन्यवाद अनंता।
Deleteकटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
ReplyDeleteबोए तूने, इतने काँटे,
फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
जा, अब याद मुझे न आ,
जा, अप्रिल तू जा!
सही कहा ये अप्रैल तो सचमुच दुख ही बाँट गया...
बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन
वाह!!!
जी, इस अप्रिल को भूलाना आसान नहीं। शायद आनेवाले कई अप्रिल ऐसे ही देखने को मिले।
Deleteपर हमें चैतन्य होना होगा।
विनम्र आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया उर्मिला जी।
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