बड़े अजीब से, हैं ये फासले....
इन दूरियों के दरमियाँ,
जतन से कहीं,
न जाने कैसे, मन को कोई बांध ले..
अजीब से हैं ये फासले....
अदृश्य सा डोर कोई,
बंधा सा कहीं,
उलझाए, ये कस ले गिरह बांध ले...
अजीब से हैं ये फासले....
जब तलक हैं करीबियाँ,
बेपरवाह कहीं,
याद आते हैं वही, जब हों फासले...
अजीब से हैं ये फासले....
सिमट आती है ये दूरियाँ,
पलभर में वहीं,
इन फासलों से जब, कोई नाम ले...
अजीब से हैं ये फासले....
फिर गूंजती है प्रतिध्वनि,
वादियों में कहीं,
दबी जुबाँ भी कोई, गर पुकार ले ....
अजीब से हैं ये फासले....
पैगाम ले आती है हवाएँ,
दिशाओं से कहीं,
इक तरफा स्नेह, फासलों में पले....
अजीब से हैं ये फासले....
इक अधूरा कोई संवाद,
एकांत में कहीं,
खुद ही मन, अपने आप से करे...
अजीब से हैं ये फासले....
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