Sunday, 24 March 2019

प्रेम के कल्पवृक्ष

ऐ नैसर्गिक प्रेम के मृदुल एहसास,
फैल जाओ तुम फिर इन धमनियों में रक्त की तरह,
फिर लेकर आओ वही मधुमास,
के देखूँ जिधर भी मैं दिशाओं में मुड़कर,
वात्सल्य हो, सहिष्णुता हो, हर आँखों मे हो विश्वास,
लोभ, द्वेश, क्लेश, वासना, तृष्णा का मन जले,
कण-कण में हो सिर्फ प्रेम का वास.....

प्रेम ...!
न जाने कितनी ही बार,दुहराया गया है यह शब्द,
कितनी बार रची गई है कविता,
कितनी बार लिखा गया है इतिहास ढाई आखर का
जिसमें सिमट गई है....
पूरी दुनिया, पूरा ब्रह्माँड, पूरा देवत्व,
रचयिता तब ही रच पाया होगा इक कल्पित स्वर्ग...

अब ...! प्रेम वात्सल्य यहीं कहीं गुम-सुम पड़ा है,
पाषाण से हो चुके दिलों में,
संकुचित से हो चुके गुजरते पलों में,
इन आपा-धापी भरे निरंकुश से चंगुलों में,
ध्वस्त कर रचयिता की कल्पना, रचा है हमने नर्क...

सुनो..! चाहता हूँ मैं फिर लगाऊँ वात्सल्य के कल्पवृक्ष,
ठीक वैसे ही जैसे....
समुद्र के बीच से जगती है ढेह सी लहरें
बादलों की छाती से फूट पड़ते है असंख्य बौछारें
शाम की धुली अलसाई हवा कर जाती है रूमानी बातें,
अचानक सूखते सोते भर जाते हैं लबालब....

क्युँ न ..!
एक बार फिर से रक्त की तरह हमारे धमनियों में,
दौड़ जाए प्रेम की नदी !

और खिल जाएँ प्रेम के कल्पवृक्ष.....

(मेरी ही एक पुरानी रचना, जो मुझे हमेशा नई लगती है, पुनःउद्धृत है)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

12 comments:

  1. वाह! प्रेम भाव लिए
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    1. आदरणीया रीना जी, बहुत-बहुत धन्यवाद । स्वागत है आपका इस पटल पर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-03-2019) को "सबके मन में भेद" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/03/2019 की बुलेटिन, " नेगेटिव और पॉज़िटिव राजनीति - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. आदरणीय शिवम जी, आभारी हूँ। सधैव स्वागत है आपका इस पटल पर।

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  5. बहुत ही बेहतरीन रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी ।

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  6. बहुत ही भावपूर्ण रचना ... मन के जज्बात शब्द के माध्यम से बह निकले ...

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