Thursday, 14 October 2021

मैं और मेरे जीवंत पल

मैं और संग मेरे, जीवंत से ये पल मेरे!

बुने हर पल, कई सपनों के महल,
भरे रंग कई, नैनों तले जगाए रात कई,
संग मेरे, करे मनमानियां,
जीवंत से ये पल मेरे!

कहीं खोई सी हो, बादलों में धूप,
झूमे वो गगन, धरे ये चांदनी कई रूप,
टिम-टिमाते, सितारों भरे,
जीवंत से ये पल मेरे!

ठहर सी गई हो, कुछ पल पवन,
रुकी हो साँसें, रुकी सी हों ये धड़कन,
मगर, द्रुत कदमों से दौड़े,
जीवंत से ये पल मेरे!

गूँजे कहीं, उन कदमों की आहट,
बजे यूँ हीं, टूटी सी ये वीणा यकायक,
चुपके से, सुनाए वही धुन,
जीवंत से ये पल मेरे!

जागृत हकीकत, या महज स्वप्न,
सुप्त कई एहसास, यूं हो उठे जीवंत,
करे, तुम्हारी ही बातें अनंत,
जीवंत से ये पल मेरे!

मैं और संग मेरे, जीवंत से ये पल मेरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2 comments:

  1. गूँजे कहीं, उन कदमों की आहट,
    बजे यूँ हीं, टूटी सी ये वीणा यकायक,
    चुपके से, सुनाए वही धुन,
    जीवंत से ये पल मेरे...अतिसुंदर रचना

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