बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया,
मन को!
वो सपना, बस इक सपन सलोना,
पर लगता, वो जागा सा!
बंधा, इक धागा सा,
संजो लेना,
अधीर ना होना, ना खोना,
मन को!
बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया,
मन को!
पर जागे से ये पल, जागे उच्छ्वास,
जागी, उनींदी सी ये पलकें,
सोए, कैसे एहसास?
पिरोए रखना,
धीरज के, उन धागों से,
मन को!
बहला गया, पल कोई, दो पल,
कुछ समझा गया,
मन को!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 अक्टूबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
सुन्दर प्रस्तुति
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