वो हैं मंजिल, वो हैं शामिल रास्तों में,
पर ढूंढ़ती, उनको ही नजर,
धूप की, तिलमिल, करवटों में,
रंगी सांझ की, झिलमिल सी आहटों में,
वक्त की, धूमिल सी सिलवटों में,
घुल चले जो कहीं!
क्षितिज के उतरते, सीढ़ियों पर,
पसरते, दिन तले,
बिखरते हैं जब, ख्यालों के उजले सवेरे,नर्म, एहसासों को समेटे,
ढूंढ़ता हूं मैं,
ओस की, उन सूखती बूंदोंं को,
उड़ चले जो, कहीं!
गहराते, रात के, ये घनेरे दामन,
सिमटता सा, पल,
पंख फैलाए, विस्तृत खुला सा आंगन,
देता रहा, कोई निमंत्रण,
पर वो किधर,
ढूंढ़ती, हर ओर उनको नजर,
छुप चले जो कहीं!
वो हैं मंजिल, वो हैं शामिल रास्तों में,
हर फिक्र में, वो हैं शामिल,
जिक्र, दिल की हर धड़कनों में,
बनकर एक खुश्बू, बह रहे, गुलशनों में,
बंद पलकों की, इन चिलमनों में,
बस चले जो कहीं!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द मंगलवार 29 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteसुन्दर |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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