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Wednesday, 24 November 2021

28 साल

मुझसे, जब मिले थे तुम, पहली बार,
और जब, आज फिर मिले हो, 28 वर्षों बाद,
मध्य, कहीं ढ़ल चला है, इक अन्तराल,
पर, वक्त बुन चला है, इक जाल,
और, सिमट चुके हैं साल!

अजनबी सी, हिचकिचाहटों के घेरे,
गुम हुए कब, तन्हाईयों में घुलते सांझ-सवेरे,
सितारों सी, तुम्हारे, बिंदियों की चमक,
बना गईं, जाने कब, बे-झिझक,
बीते, पल में यूँ, 28 साल!

इक दिशा, बह चली, अब दो धारा,
कौन जाने, किधर, मिल पाए, कब किनारा,
ना प्रश्न कोई, ना ही, उत्तर की अपेक्षा,
कामना-रहित, यूँ बहे अनवरत,
संग-संग, साल दर ये साल!

सुलझ गई, तमाम थी जो, उलझनें,
ठौर पा गईं, उन्मादित सी ये हमारी धड़कनें,
बांध कर, इक डोर में, रख गए हो तुम,
बिन कहे, सब, कह गए हो तुम,
शेष, कह रहे वो 28 साल!

ये वक्त, कल बिखेर दे न एक नमीं,
ढ़ले ये सांझ, तुम ढ़लो कहीं, और, हम कहीं,
मध्य कहीं, ढ़ल चले ना, इक अन्तराल,
ग्रास कर न ले, क्रूर सा ये काल,
शेष, जाने कितने हैं साल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 14 December 2018

खामोश तेरी बातें

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

संख्यातीत,
इन क्षणों में मेरे,
सुवासित है,
उन्मादित साँसों के घेरे,
ये खामोश लब,
बरबस कुछ कह जाते,
नवीन बातें,
हर जड़ विषाद से परे!

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

उल्लासित,
इन दो नैनों में मेरे,
अहसास तेरा,
है तेरे अस्तित्व से परे,
ये बहती हवाएं,
संवाद तेरे ही ले आए,
ये आमंत्रण,
हर जड़ अवसाद से परे!

खामोश तेरी बातें,,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

अंत-विहीन,
ऊँचे दरख्तों से परे,
तेरे ही साए,
गीत निमंत्रण के सुनाए,
अंतहीन व्योम,
तैरते श्वेत-श्याम बादल,
उनमुक्त ये संवाद,
हर जड़ उन्माद से परे !!

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...