मुझसे, जब मिले थे तुम, पहली बार,
और जब, आज फिर मिले हो, 28 वर्षों बाद,
मध्य, कहीं ढ़ल चला है, इक अन्तराल,
पर, वक्त बुन चला है, इक जाल,
और, सिमट चुके हैं साल!
अजनबी सी, हिचकिचाहटों के घेरे,
गुम हुए कब, तन्हाईयों में घुलते सांझ-सवेरे,
सितारों सी, तुम्हारे, बिंदियों की चमक,
बना गईं, जाने कब, बे-झिझक,
बीते, पल में यूँ, 28 साल!
इक दिशा, बह चली, अब दो धारा,
कौन जाने, किधर, मिल पाए, कब किनारा,
ना प्रश्न कोई, ना ही, उत्तर की अपेक्षा,
कामना-रहित, यूँ बहे अनवरत,
संग-संग, साल दर ये साल!
सुलझ गई, तमाम थी जो, उलझनें,
ठौर पा गईं, उन्मादित सी ये हमारी धड़कनें,
बांध कर, इक डोर में, रख गए हो तुम,
बिन कहे, सब, कह गए हो तुम,
शेष, कह रहे वो 28 साल!
ये वक्त, कल बिखेर दे न एक नमीं,
ढ़ले ये सांझ, तुम ढ़लो कहीं, और, हम कहीं,
मध्य कहीं, ढ़ल चले ना, इक अन्तराल,
ग्रास कर न ले, क्रूर सा ये काल,
शेष, जाने कितने हैं साल!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया जिग्यासा जी
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ReplyDeleteजीवन का लेखा जोखा प्रस्तुत करतीं भावपूर्ण रचना पुरुषोत्तम जी। सुखद दांपत्य जीवन की अभिनव झांकी सजाई है आपने शब्दों में। बहुत कुछ होता है हमारे पास तो हम उसे खोने से। भयाक्रांत रहते हैं ऐसी ही भावनाओं को बड़ी सुघड़ता से शब्द दिए हैं आपने। ईश्वर की अनुकम्पा आपकी सुंदर जोडी पर बनी रहे यहीं दुआ और कामना है। विवाह की सालगिरह के शुभ अवसर पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। अभिराम चित्र के लिए हार्दिक आभार 🙏🙏🌷🌷
ReplyDeleteशुक्रिया, आभार आदरणीया।।।।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.11.2021 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4260 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
आभार आदरणीय
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteहृदय को छूती हुई भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteहार्दिक शुभकामनाएं।🌷🌷
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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सुलझ गई, तमाम थी जो, उलझनें,
ReplyDeleteठौर पा गईं, उन्मादित सी ये हमारी धड़कनें,
बांध कर, इक डोर में, रख गए हो तुम,
बिन कहे, सब, कह गए हो तुम,