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Saturday, 13 January 2024

मरहम

यूं तो, यूं न थे हम!
गूंजती थी, हर पल कोई न कोई सरगम,
महक उठती थी पवन!

बह चला, वो दरिया,
करवटें लेती रही, अंजान सी ये जिंदगी,
और, बंदगी मेरी!
रह गई, कुछ अनसुनी सी..
यूं तो...

अब न, शीशे में मैं,
और ही शख्स कोई, अब परछाईयों में, 
महफिलें, सज रही, हर तरफ,
पर, गुमशुदा मैं!
यूं तो...

ईशारे, अब कहां!
गगन से, अब न पुकारते वो कहकशां,
बिखरी, भीगी सी वे बदलियां,
इन्तजार में, मैं!
यूं तो...

गम, एक मरहम,
इस एकाकी राह, अब वो ही, हमदम,
चुप हैं कितने, वे साजो-तराने,
खामोश सा, मैं!
यूं तो...

यूं तो सर झुकाए,  
सह गए, सजदों में वक्त के ये सितम,
और, बंदगी मेरी!
रह गई, कुछ अनसुनी सी..
यूं तो...

यूं तो, यूं न थे हम!
गूंजती थी, हर पल कोई न कोई सरगम,
महक उठती थी पवन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Monday, 16 January 2023

दिल न जाने कहां


दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
आ ही उतरा, जमीं पर,
वो आसमां!

कैसे मूंद लूं, ये दो, पलकें,
रोक लूं कैसे, ये आंसू जो छलके,
सम्हाले, न संभले,
ले चला, मुझको किधर!
वो कारवां!

दिल था यहीं, अब न जाने कहां?

ख़ामोश है, कितनी दिशा,
चीखकर, कभी, गूंजती है निशा,
चुप रौशनी के साये,
यूं बुलाए, मुझको किधर!
वो कहकशां!

दिल था यहीं, अब न जाने कहां?

हो शायद, वो फलक पर!
लिए तस्वीर, उनकी पलक पर!
सम्हाले, आस कोई,
ले चला, मुझको किधर!
वो बागवां!

दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
आ ही उतरा, जमीं पर,
वो आसमां!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)