दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
आ ही उतरा, जमीं पर,
वो आसमां!
कैसे मूंद लूं, ये दो, पलकें,
रोक लूं कैसे, ये आंसू जो छलके,
सम्हाले, न संभले,
ले चला, मुझको किधर!
वो कारवां!
दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
ख़ामोश है, कितनी दिशा,
चीखकर, कभी, गूंजती है निशा,
चुप रौशनी के साये,
यूं बुलाए, मुझको किधर!
वो कहकशां!
दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
हो शायद, वो फलक पर!
लिए तस्वीर, उनकी पलक पर!
सम्हाले, आस कोई,
ले चला, मुझको किधर!
वो बागवां!
दिल था यहीं, अब न जाने कहां?
आ ही उतरा, जमीं पर,
वो आसमां!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत खूब ... दिल तो दिल है ढूब्धिये मिल जायग कैन न कहीं ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteनमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 29/01/2023 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
बहुत ही सुंदर सृजन।
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