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Tuesday, 8 March 2016

स्त्री जगत जननी

मन आज सोच रहा मेरा.....!

श्रृष्टि का आरंभ क्या स्त्री से हुआ?
जन्म देने की शक्ति सिर्फ स्त्री को ही क्यूँ?
जगत -जननी स्त्री ही क्यूँ....?
दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, काली सारी स्त्री क्यूँ?

अनेकों प्रश्न उठ रहे मन में आज....!

स्त्री ही तो है जग की शक्ति स्वरूपा,
सुन्दरता की असीम पराकाष्ठा और अधिष्ठाता,
पूर्ण ममता और स्नेह का मूर्त स्वरूप,
जगत को प्रथम दुग्ध पान से सीचने वाली!

फिर यह विवाद क्यूँ, दिवस विशेष यह क्यूँ?

नाभि मे नारी के पलती है दुनियाँ,
कोख नारी की ही प्रथम पाती ये दुनियाँ,
छुपने को माता का आँचल ही यहाँ,
अस्तित्व पुरुष का जग में नगन्य नारी बिना।

किसी क्षण नारी का अपमान करती क्युँ दुनियाँ?

भटके हैं क्या कुछ कन्याओं के स्वर भी?
कैकैयी, मंथरा, मंदोदरी, अप्सराएँ भी महिला ही,
फिसले थे कुछ कदम कुल पल इनके भी,
सृष्टि की विविधताओं का इक रूप है यह भी!

नारी तो है अधिष्ठाता शक्ति, प्रभुसत्ता, सम्मान की!

सत्य, शिव और सुन्दर जग में माता ही,
स्त्री रूप मे ईश्वर नें जग मे जना इनको ही,
लटों में इनके ही गंगा और गंगोत्री भी,
धरा के विविध स्वरूप की अलौकिक निधि स्त्री ही!

मन आज सोच रहा मेरा ........!