Wednesday 16 December 2020

आसां नहीँ

आसां नही, किसी के किस्सों में समा जाना,
रहूँ मैं जैसा! हूँ मगर आज का हिस्सा,
कल के किस्सों में, शायद रह जाऊँ बेगाना!
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

जीवंत, एक जीवन, सुसुप्त करोड़ों भावना,
कितना ही नितांत, उनका जाग जाना!
कितने थे विकल्प, पर न थी एक संभावना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

मन की किताबों पर, कोई लिख जाए कैसे!
मौन किस्सों का हिस्सा, बन जाए कैसे!
कपोल-कल्पित, सारगर्भित सा मेरा तराना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

ये हैं चह-चहाहटें, है ये ही कल की आहटें,
जीवंत संवेदनाओं की, मूक लिखावटें!
सुने ही कौन, ये अनगढ़ा, मूक सा फ़साना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

क्यूँ कोई बनाए, किसी को याद का हिस्सा,
क्यूँ कोई पढ़े, कोई अनगढ़ा सा किस्सा,
क्यूँ कोई संभाले, किसी और की संवेदना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

पहर दोपहर, बढ़ा, असंवेदनाओं का शहर,
मान कर अमृत, पान कर लेना ये जहर,
रख संभालना, जीवंत भावना व संवेदना,
आसां नहीं, किसी और का हो जाना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

33 comments:

  1. सत्य एवं सुंदर पंक्तियाँ
    लाजवाब सृजन आदरणीय सर।
    उम्दा 👌
    सादर प्रणाम 🙏

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. रख संभालना, जीवंत भावना व संवेदना..वाहह!बहुत ही खूबसूरत शब्दावली संग सुरभित भावाभिव्यक्ति।
    शुभकामनाएँँ

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    1. आभारी हूँ। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण है।।।।।।।
      नमन आदरणीया। ।।

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  4. सारगर्भित सा ही है यह तराना ... सच ! इतना आसान तो नहीं ही है ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अमृता जी

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  5. ये हैं चह-चहाहटें, है ये ही कल की आहटें,
    जीवंत संवेदनाओं की, मूक लिखावटें!
    सुने ही कौन, ये अनगढ़ा, मूक सा फ़साना,
    आसां नहीं, किसी और का हो जाना!
    बेहद खूबसूरत रचना आदरणीय।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी

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  6. मन की किताबों पर, कोई लिख जाए कैसे!
    मौन किस्सों का हिस्सा, बन जाए कैसे!
    कपोल-कल्पित, सारगर्भित सा मेरा तराना,
    आसां नहीं, किसी और का हो जाना!...वाह!लाजवाब सृजन सर।
    सादर प्रणाम

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी

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  7. पहर दोपहर, बढ़ा, असंवेदनाओं का शहर,
    मान कर अमृत, पान कर लेना ये जहर,
    रख संभालना, जीवंत भावना व संवेदना,
    आसां नहीं, किसी और का हो जाना!सुन्दर सृजन।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शान्तनु जी

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  8. पहर दोपहर मान कर बढ़ा, असंवेदनाओं का शहर,मान कर अमृत पान कर लेना ये जहर
    बहुत सुंदर पंक्तियां

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया भारती जी

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  9. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. भावपूर्ण, अतिसुंदर और सुगढ़ सृजन।
    मानव मन की संवेदना महसूस कर शब्दों में पिरोना आपकी लेखनी बखूबी जानती है।
    जी प्रणाम आदरणीय।
    सदर।

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    1. एक दीर्घ अन्तराल के पश्चात ब्लाॅग पर पुनः पधारने व प्रतिक्रिया देने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी। सुस्वागतम्। ।।।।

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  11. 'सुने ही कौन अनगढ़ मूक से फ़साना
    आसां नही किसी और का हो जाना'
    भांवो को शब्दों की लड़ियों को खूबसूरती से पिरोती अप्रतिम सृजन ।

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    1. आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया उर्मिला जी। धन्यवाद।

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  12. बहुत खूब।
    मोहक /उम्दा।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।

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  13. बहुत ही शानदार लेखन

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया सद जी। सुस्वागतम्। ।।।। हृदयतल से स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।

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  14. क्यूँ कोई बनाए, किसी को याद का हिस्सा,
    क्यूँ कोई पढ़े, कोई अनगढ़ा सा किस्सा,
    क्यूँ कोई संभाले, किसी और की संवेदना,
    आसां नहीं, किसी और का हो जाना... बहुत सुंदर पंक्तियां

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