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Tuesday, 26 January 2016

तेरा अस्तित्व

इक जर्रा मात्र भी नही तू सृष्टि के विस्तार का,
अस्तित्व तेरा! व्योम के धूल कण सा भी नहीं!
इक लघुक्षण भी तो नही तू इस अनंतकाल का,
फिर क्यूँ भला इतना अभिमान तुझमें पल रहा।

अपनी लघुता का सत्य, तू स्वीकार कर यहाँ,
अस्तित्व की रक्षा को, तू संघर्ष कर रहा यहाँ,
पराशक्ति तो बस एक जो राज हमपे कर रहा,
फिर क्युँ भला तू नाज इतना खुद पे कर रहा।

उस दिव्य अनन्त की प्रखर से तो है तू खिला,
उस व्योम की ही किसी शक्ति ने तुझको जना,
इस धरा को उस शक्ति ने तेरी कर्मस्थली चुना,
फिर क्यूँ भला उस कर्मपथ से तू विमुख रहा।