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Friday, 16 March 2018

पन्नों के परे

इक जीवन, इक पन्नों में, इक पन्नों के परे.....

कुछ शब्दों में अंकित पन्नों में गरे,
भावनाओं से उभर कर स्याही में लिपटे,
कल्पनाओं के रंगों से सँवरे,
बेजान, मगर हरदम जीवंत और ज्वलंत,
जज्बातों के कुलांचे भरते,
अनुभव के फरेब या हकीकत?
पन्नों पे गरे, शब्दों के ये खेत हरे भरे!

इक जीवन, इक पन्नों में, इक पन्नों के परे.....

इक इक शब्द, नेह-स्नेह से भरे,
सपनों के सतरंगी आसमान पर उड़ते,
नभ पर बिंदास पंख फैलाए,
मानो रच रहे कल्पना का नया आकाश,
अविश्वसनीय संरचना रचते,
या चक्रव्युह कोई खुद में भ्रमित!
पन्नों के परे! ये शब्दों के जंगल हरे भरे!

इक जीवन, इक पन्नों में, इक पन्नों के परे.....

किरदार कई इन पन्नों पर गढ़े,
एकसाथ विपरीत विचारधाराओं की पृष्ठें,
शक्ल इक किताब की लिए,
विचारधाराओं की संगम का आभास,
कोई नवधारा बनकर बहते,
या आपस मे लड़ते होते मूर्छित?
पन्नों के परे! ये व्यथा विन्यास हरे भरे!

इक जीवन, इक पन्नों में, इक पन्नों के परे.....