निशा रजनी फिर से खिल आई,
कोटि दीप जल करती अगुवाई,
कीट-पतंगें उड़ती भर तरुणाई।
खिल उठेे मुखमंडल रात्रिचर के
अदभुत छटा छाई नभमंडल पे,
गूंज उठी रात्रि स्वर कंपन से।
झिंगुर, शलभ, कीट, पतंगे गाते,
विविध नृत्य कलाओं से मदमाते,
आहुति दे अपनी उत्सव मनाते।
नववधु अातुर निशा निमंत्रण को,
सप्तश्रृंगार कर बैठी आमंत्रण को,
हृदय धड़कते नव गीत गाने को ।
स्नेह की बूँद निशा ने भी बरसाए,
मखमली शीत की चादर बिछाए,
स्नेहिल मदिरा मकरंद सी मदमाए।
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