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Wednesday, 6 May 2020

प्याले

कल तलक, छलक ही जाते थे ये प्याले,
होठों तलक, यूँ आते-आते!
कोलाहल, वो कल के,
खन-खन वो, हल्के-हल्के से,
ठहाकों के गूंज, थे जो दो पल के,
विस्मित से, कर गए वो पल,
विस्तृत हुए ये अस्ताचल,
सिमटने लगे फलक!

चुप भी करो, बस यूँ ही, तसल्ली न दो,
हो चले हैं, खाली ये प्याले,
छलकेंगे, अब ये कैसे,
छू लूँ, तो खनक ही जाएंगे!
हैं गम से ये भरे, टूट ही जाएंगे,
थम जाने दो, ये कोलाहल,
पी चुके, हम, हलाहल,
सर्द आहें न भरो!

गर हो संभव, अतीत, वो ही लौटा दो,
मिटा दो, व्यतीत पलों को,
मोड़ दो, वक्त के रुख,
ये टुकड़े, हृदय के, जोड़ दो,
फिर से छलकाओ, वो ही प्याले,
ठहर जाएं, बहते ये पल,
आए ना, अस्ताचल,
गर हो ये संभव!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 28 October 2018

पथ के आकर्षण

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे पथ में ही रह जाते हैं .....

इक पथ संग-संग, साथ चले थे वो पल,
मन को जैसे, बांध चले थे वो पल,
बस हाथों मे कब, कैद हुए हैं वो पल,
वो आकर्षण, मन-मानस में बस जाते हैं!
सघन वन में, ये खींच लिए जाते हैं....

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे पथ में ही रह जाते हैं .....

सम्मोहन था, या कोई जादू था उस पल,
मन कितना, बेकाबू था उस पल,
जाम कई, प्यालों से छलके उस पल,
सारा जाम, कहाँ बूँद-बूँद हम पी पाते हैं!
प्यासे है जो, प्यासे ही रह जाते हैं....

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे पथ में ही रह जाते हैं .....

अब नजरों से, ओझल हुए है वो पल,
कुछ बोझिल, कर गए हैं वो पल,
आगे हूँ मैं, पथ में ही छूटे हैं वो पल,
बहते धार, वापस हाथों में कब आते हैं!
कुछ मेरा ही, मुझमें से ले जाते है.....

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे पथ में ही रह जाते हैं .....