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Sunday, 13 May 2018

माँ कहती थी

मेरी माँ, मुझसे न जाने क्या-क्या कहती थी....

जब पाँवो पे झुलाती थी,
तो माँ कहती थी....

घुघुआ मनेरिया, अरवा चौर के ढेरिया,
ढेरिया उड़ियायल जाय,
कुतवा रगिदले जाय,
देखिहँ रे बुढिया,
हमर बेटा जाय छौ, हड़िया बर्तन फोरै ल,
नया घर लेम्हि कि पुराना घर?
नया घर उठे, पुराना घर गिरे!

जब संग खेला करती थी,
तो माँ कहती थी....

अत्ता पत्ता, बेटा के पाँच ठो बिटवा,
एगो गाय में, एगो भैंस में,
एगो लकड़ी में, एगो बकड़ी में,
एगो छकड़ी में.....
चौर चूड़ा खैले जाय, गुदुर गांय लगैले जाय...
और संग-संग हँस पड़ती थी माँ!

जब दूध पिलाती थी,
तो बड़े प्यार से माँ कहती थी....

चंदा मामा, आरे आबा बारे आबा,
नदिया किनारे आबा,
सोना के कटोरिया में, दूध-भात लेले आबा,
बऊआ के मुहमा में घुटूक....

जब रोटी खिलाती थी,
तो माँ कहती थी....

देखो देखो, वो कौआ रोटी लेकर भागा....
फिर निवाला मुह में रख देती,
कभी-कभी ये भी कहती कि....
थाली में खाना मत छोड़ना,
कहीं किसी दिन नाराज खाना, तुझे न छोड़ दे

जब सर में तेल लगाती थी,
तो माँ कहती थी....

तेलिया चुप चुप, माथा करे लुप लुप,
तेलवा चुअत जाय,
बेलवा माथा फूटत जाय.....

जब सुलाया करती थी,
तो माँ कहती थी.....

पलकों पे आ जा री निंदिया....
ओ नींदिया रानी तू ले चल वहाँ,
सपनों मे संग तेरे खेलेगा मेरा मुन्ना जहाँ.....

जब सपने में मैं राक्षस से डर जाता था,
तब सोने से पहले हिम्मत देकर
इक मंत्र पढने को समझाती
और रोज ही सिखाती माँ कहती थी......

हिमालस्य उत्तरे देशे, कर्कटी नाम राक्षसी,
तस्य स्मरण मात्रेण, दुः स्वप्नः न जायते.......
फिर क्या था, मै बलशाली बन जाता था,
सपने में उस राक्षस से लड़ जाता था....

जब पूजा करवाती थी,
तो माँ कहती थी.....

नमामि शमीशां निर्वाण रूपम.....
विद्या दीजिए, बल दीजिए, बुद्धि दीजिए....
हाथ फेरकर सर पर,
बलाएँ सब अपने सर लेती थी,
मन ही मन कुछ बुदबुदाती थी फिर माँ...

मेरी माँ मुझसे न जाने क्या-क्या कहती थी....
समझाती थी यदा कदा....
मीठी-मीठी बातों से बचना जरा,
दुनियाँ के लोगों में है जादू भरा.....

मातृ-दिवस (13 मई) की शुभकामनाओं सहित

Monday, 13 November 2017

माँ, बेटा और प्रश्न

माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

निरुत्तर माता, कुछ पल को चुप होती,
मुस्कुराकुर फिर, नन्हे को गोद में भर लेती,
चूमती, सहलाती, बातों से बहलाती,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

माँ, विह्वल सी हो उठती जज्बातों से,
माँ का मन, कहाँ ऊबता नन्हे की बातों से?
हँसती, फिर गढ़ती इक नई कहानी,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

बार-बार वही प्रश्न फिर दोहराता नन्हा,
धैर्य पूर्वक माता कहती फिर कुछ अनकहा,
परत दर परत सुलझाती जिज्ञासा,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

धैर्य, शौर्य, दया, ज्ञान सब माँ से पाया,
बड़ा हुआ नन्हा, उसने माँ को ही रुलाया!
तपती धूप में ममता की वो छाया,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

पोंछ लेती वो आँसू, आँचल में छुपकर,
सो जाती बिन खाए, किसी कोने में रहकर,
डर जाती बेटे की आहट सुनकर,
माँ से फिर पूछता बेटा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"

अब माँ को बस सर्वदा चुप ही रहना था,
खामोशी ही उसका गहना था,
गाढ़ी नींद में उसे जो अब सोना था,
माँ से क्या पूछता बेटा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"