माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
निरुत्तर माता, कुछ पल को चुप होती,
मुस्कुराकुर फिर, नन्हे को गोद में भर लेती,
चूमती, सहलाती, बातों से बहलाती,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
माँ, विह्वल सी हो उठती जज्बातों से,
माँ का मन, कहाँ ऊबता नन्हे की बातों से?
हँसती, फिर गढ़ती इक नई कहानी,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
बार-बार वही प्रश्न फिर दोहराता नन्हा,
धैर्य पूर्वक माता कहती फिर कुछ अनकहा,
परत दर परत सुलझाती जिज्ञासा,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
धैर्य, शौर्य, दया, ज्ञान सब माँ से पाया,
बड़ा हुआ नन्हा, उसने माँ को ही रुलाया!
तपती धूप में ममता की वो छाया,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
पोंछ लेती वो आँसू, आँचल में छुपकर,
सो जाती बिन खाए, किसी कोने में रहकर,
डर जाती बेटे की आहट सुनकर,
माँ से फिर पूछता बेटा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
निरुत्तर माता, कुछ पल को चुप होती,
मुस्कुराकुर फिर, नन्हे को गोद में भर लेती,
चूमती, सहलाती, बातों से बहलाती,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
माँ, विह्वल सी हो उठती जज्बातों से,
माँ का मन, कहाँ ऊबता नन्हे की बातों से?
हँसती, फिर गढ़ती इक नई कहानी,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
बार-बार वही प्रश्न फिर दोहराता नन्हा,
धैर्य पूर्वक माता कहती फिर कुछ अनकहा,
परत दर परत सुलझाती जिज्ञासा,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
धैर्य, शौर्य, दया, ज्ञान सब माँ से पाया,
बड़ा हुआ नन्हा, उसने माँ को ही रुलाया!
तपती धूप में ममता की वो छाया,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
पोंछ लेती वो आँसू, आँचल में छुपकर,
सो जाती बिन खाए, किसी कोने में रहकर,
डर जाती बेटे की आहट सुनकर,
माँ से फिर पूछता बेटा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
अब माँ को बस सर्वदा चुप ही रहना था,
खामोशी ही उसका गहना था,
गाढ़ी नींद में उसे जो अब सोना था,
माँ से क्या पूछता बेटा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
हालचाल पूछे क्या कोई, मुश्किल मिलना, दाना-पानी
ReplyDeleteबूढ़ी माँ से दीवारें ही सुनतीं अब, दिलचस्प कहानी.
आदरणीया गोपेश जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
Deleteमर्मस्पर्शी रचना पुरुषोत्तम जी।
ReplyDeleteमां कभी नही थकती और बच्चों का धैर्य न जाने कहाँ गुम है।
उत्तम।
आदरणीया कुसुम जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
Deleteमेरे मन के भावों को उद्वेलित कर दिया आपकी रचना,क्या नियति है जो जीवन
ReplyDeleteभर दर्द सहती है,हर पल मुस्कराती है,अंत में दर्द ही उसका साथी बन जाता है, बहुत
ही मर्मस्पर्शी रचना
आदरणीया अभिलाषा जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
Deleteधैर्य, शौर्य, दया, ज्ञान सब माँ से पाया,
ReplyDeleteबड़ा हुआ नन्हा, उसने माँ को ही रुलाया!
तपती धूप में ममता की वो छाया,
माँ से फिर पूछता नन्हा "क्या हुआ फिर उसके बाद?"
बेहद हृदयस्पर्शी रचना
आदरणीया अनुराधा जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
Deleteबेहद संवेदनशील भावात्मक रचना रचना ,मातृदिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteआदरणीया रीतु असूजा जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
Deleteमाँ, विह्वल सी हो उठती जज्बातों से,
ReplyDeleteमाँ का मन, कहाँ ऊबता नन्हे की बातों से?
सच कहा माँ का मन नहीं उबता हर सवाल का हर बार जबाव देती प्यार से ...पर नन्हा बड़ा होते ही पहले माँ को खामोश कर रहा है...बहुत ही हृदयस्पर्शी, मार्मिक एवं लाजवाब सृजन...
मातृदिवस की शुभकामनाएं।
आदरणीया सुधा देवरानी जी, मातृदिवस की शुभकामनाओं सहित आभार।
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