Monday, 29 February 2016

उदास शाम

ढ़ल रही अब शाम, आज कांतिहीन उदास,
भूला सा भ्रमित मैं, आज खुद अपने पास!

छिटक गई है डोर जैसे उस चिर विश्वास की,
टूट गई है साँस ज्यूँ उर के हास विलास की!

धुंध में सहमी सी है अाज शाम उदास क्लांत,
कितना असह्य अब ये एकाकीपन का एकांत!

घुटन सी इन साँसों में, मन कितना अशांत,
अवरोध सा ऱक्त प्रवाह में. हृदय आक्रान्त ।

हौले हौले उतर रहा, निर्मम तम का अम्बार,
अपलक खुले नैनों में, छुप रहा व्यथा अपार।

सौ-सौ संशय मन में, लेकिन शाम है उदास,
टूट है वो धागा जिसमें मेरी आस्था मेरी आस|

Sunday, 28 February 2016

किस तारे में?

अम्बर के धुंधले गहरे अंधियारे में,
देखती हैं आँखे उस सुंदर तारे में,
बिछड़ा मुझसे जो इस जीवन में,
मिट चुके हैं स्वर जिसके शून्य में,
खो गई जिसकी निशानी धूलि में।

गाता है अब वो पार उस अंबर से,
स्वर जिसके मिटे नहीं इस मन से,
हृदय कंपित अब भी उस स्वर से,
धूल कण सा उड़ता वो मानस में,
स्वर गुम हुई है जाने किस तारे में।

था इस सूने जीवन का आधार वो,
इक पल में छूटा कैसे हाथों से वो,
कहते हैं सब  रहता अंबर पार वो,
कभी दिखता है किसी तारे में वो,
तलाशता हूँ अंबर का मैं तारा वो।

लाखों तारे टकते ऱोज इस अंबर मे,
धूलकण बन वो जाने किस तारे में,
संगीत गुमशुम जाने किस शून्य में,
नीर नीर सी छलकी इन  आँखों में,
जाने रहता है वो अब किस तारे में।

पक रहा मानव

जीवन की भट्ठी में पक रहा मानव।

न जाने किस स्वर नगरी में मानव,
हैं बज रहा यूँ ज्यूँ तेज घुँघरू की रव,
कुछ राग अति तीव्र, कुछ राग अभिनव।

न जाने किन पदचिन्हों पर अग्रसर,
पल पल कितने ही मिश्रित अनुभव,
संग्रहित कर रहा इन राहों पर मानव।

कुछ अकथनीय और कुछ असंभव,
कुछ खट्टे मीठे और कुछ कटु अनुभव,
क्या जीवन इस बिन हो सकता संभव?

जीवन की भट्ठी में पक रहा मानव।

होली तुम संग

प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से,

रंग जाऊंगा जीवन तेरा, खुशियों की रंगों से,
सूखेगी न चुनरी तेरी, सपनों की इन रंगों से,
चाहतें भर दूंगा जीवन मैं, अपने ही रंगों से।

प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से।

जनमों तक ना छूटेगी, ऐसा रंग लगा जाऊंगा,
तार हृदय के रंग जाएंगे, दामन में भर जाऊंगा,
आँखें खुली रह जाएंगी, सपने ऐसे सजाऊंगा।

तेरे सपनों की रंगों से, जीवन की फाग खेलूंगा।
प्रिय, होली तुम संग खेलूंगा, रंगों और उमंगों से।

Saturday, 27 February 2016

तुम ही तुम हो नजरों मे

नजरों का धोखा नहीं, मेरी हकीकत हो तुम।

तुम ही तुम हो नजरों मे,
साँसों में हो तुम धड़कन में,
चांदनी सी तुम आओ जीवन में।

चाँदनी सी रौशन हो, मेरी हकीकत हो तुम।

तरसी है ये मन की जमीं,
मैं हूँ कही और दिल है कहीं,
आओ तुम सिमट जाऊँ तुम मे कहीं।

दूर तुम मुझसे नहीं, मेरी हकीकत हो तुम।

जनमों से तुम आँखों मे हो,
अब कहीं तुम मुझको मिले हो,
जीवन की राहों मे अब बस तुम ही हो।

जनमों की आरजू हो, मेरी हकीकत हो तुम।

इंतजार सदियों का

इंतजार सदियों का, जानम इस जनम भी रहा!

तुम हर जनम मिले हर जनम दूर रहे,
जनम जनम के है दिलवर ये सिलसिले,
अबकी ये शिकवा रहा तुम अजनवी से लगे।

इंतजार सदियों का, जानम इस जनम भी रहा!

तुमसे ही रिश्ता मेरा जनम जनम का रहा,
तुझको फिकर ना मेरी जनमो जनम से रहा,
अबकी जनम तुमको मुझसे शिकायत है क्या?

इंतजार सदियों का, जानम इस जनम भी रहा!

दूर से मैं तुमको जनमों से देखा करूँ,
तुझको खबर ना मगर तेरा इंतजार करूँ,
अबकी तू ले ले खबर ना मैं शिकायत करूँ।

इंतजार सदियों का, जानम इस जनम भी रहा!

Friday, 26 February 2016

मै रुक जाता!

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

प्रिये, तुम मेरी आस, तुम जन्मों की प्यास,
प्यास बुझाने जन्मों की तेरी पनघट ही मैं आता,
मैं राही तेरी राहों का, और कहीं मैं क्युँ जाता,
राह देखती तुम भी अगर, मैं भी तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

तुमसे ही चलती ये सांसे, तुमपर ही विश्वास,
सासें जीवन की लेने तेरी बगिया ही मैं आता,
टूटे हृदय के इस मृदंग को तेरे लिए बजाता,
गीत मेरे तुम भी सुन लेती, तो मैं तेरा हो जाता।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

कह देती तुम गर, बात कभी अपने मन की,
उम्मीद लिए यही मन में, मैं तेरी राह खडृ़ा था,
दामन उम्मीद का मैंने, कहाँ कभी छोड़ा था,
यूँ ही चल पड़ा था मैं, तुमने भी कब रोका था।

प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!

मंजिलें और हैं!

अवकाश नौकरी से मिली, जिन्दगी से नहीं,
जिन्दगी तो अब शुरू, थके मेरे कदम नहीं।

अभी थका नहीं हूँ मैं, उमर अभी ढ़ली नहीं,
बढ़ती हुई दीवानगी, उम्र की अभी शुरू हुई।

थक जाते हैं वो, जिनमें चाह जीने की नहीं,
रुक जाते हैं वो कदम, लड़खड़ाते जो नहीं।

जीवन की मुश्किलों से, जो कभी लड़ा नहीं,
थक गया वो शख्स, जो राह टेढ़ी चढ़ा नहीं।

थकते नहीं वे कदम, हिम्मत जिनके पास है,
मंजिलों पे पहुचोगे तुम, हौसला गर साथ है।

नसें अभी है तनीं हुई, वानगी अभी शुरू हुई,
सपने अधूरे जो मेरे, बनेगी वो हकीकत मेरी।

तकदीर

तकदीर! 
खेल क्या से क्या दिखाती है तक्दीर ये,
रहती है उम्र भर साथ साथ तक्दीर ये,
छल आप ही से कर जाती है तक्दीर ये।

बेपनाह चाहते इस तकदीर को हम और आप,
उम्र भर हाथों की लकीरों मे ये साथ साथ, 
लेकिन, करवटें बदल सो जाती है ये चुपचाप।

हवाओं की भी अजब सियासते हैं यहाँ,
तकदीर की बुझी राख को भड़का देती यहाँ,
कही चमकते तकदीर को बुझा देती ये हवा।

कुछ इस तरह तकदीर को अपनाया है मैंने,
पेशानी की लकीरों मे इसको बिठाया है मैंने,
जो तकदीर में नहीं, उसे भी बेपनाह चाहा है मैंने..!

Thursday, 25 February 2016

तुुम मैं होती, मैं तुम होता

कभी सोचता हूँ!
मैं मैं न होता, तेरा आईना होता!
तो क्या क्या होता इस मन में?
क्या गुजरती तुझपर मुझपर जीवन में?

तुम देखती मुझमें अक्श अपना,
हर पल होती समीक्षा जीवन की मेरी,
तेरे आँसूँ बहते मेरी इन आँखों से,
तुम हँसती संग मैं भी हँस लेता,
रूप तेरा देखकर कुछ निखर मैं भी जाता,
मेरा साँवला रंग थोड़ा गोरा हो जाता।

कभी सोचता हूँ!
तुम तुम न होती, मेरी प्रतीक्षा होती!
तो क्या क्या घटता उस पल में?
क्या गुजरती तुझपर मुझपर जीवन में?

द्वार खड़ी तुम देखती राह मेरी,
मैं दूर खड़ा दैेखता मुस्काता,
इन्तजार भरे उन पलों की दास्ताँ,
तेरी बोली में सुनता जाता,
खुश करने को तुम्हें वापस जल्दी आता,
मैं पल पल इंतजार के तौलता।

कभी सोचता हूँ! तुुम मैं होती, मैं तुम होता....