गुजरते मंजर के सारे निशां, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!बहती हवा, कहती रही तेरा ही पता,
ढ़लती किरण, उकेरती गई तेरे ही निशां,
यूं उभरते तस्वीर सारे, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!
कब हुआ खाली, पटल आसमां का,
उभर आते अक्श, यूं गुजरते बादलों से,
छुपकर झांकते नजारे, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!
टूटे पात, लगे पतझड़ से ये जज्बात,
बहते नैन, इस निर्झर में पलते कब चैन,
निर्झर सी ये जज्बातें, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!
गुजरते मंजर के सारे निशां, सर-बसर,
बस रही, इक तेरी कसर!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शुक्रवार 08 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब।
ReplyDelete