अम्बर के धुंधले गहरे अंधियारे में,
देखती हैं आँखे उस सुंदर तारे में,
बिछड़ा मुझसे जो इस जीवन में,
मिट चुके हैं स्वर जिसके शून्य में,
खो गई जिसकी निशानी धूलि में।
देखती हैं आँखे उस सुंदर तारे में,
बिछड़ा मुझसे जो इस जीवन में,
मिट चुके हैं स्वर जिसके शून्य में,
खो गई जिसकी निशानी धूलि में।
गाता है अब वो पार उस अंबर से,
स्वर जिसके मिटे नहीं इस मन से,
हृदय कंपित अब भी उस स्वर से,
धूल कण सा उड़ता वो मानस में,
स्वर गुम हुई है जाने किस तारे में।
स्वर जिसके मिटे नहीं इस मन से,
हृदय कंपित अब भी उस स्वर से,
धूल कण सा उड़ता वो मानस में,
स्वर गुम हुई है जाने किस तारे में।
था इस सूने जीवन का आधार वो,
इक पल में छूटा कैसे हाथों से वो,
कहते हैं सब रहता अंबर पार वो,
कभी दिखता है किसी तारे में वो,
तलाशता हूँ अंबर का मैं तारा वो।
कहते हैं सब रहता अंबर पार वो,
कभी दिखता है किसी तारे में वो,
तलाशता हूँ अंबर का मैं तारा वो।
लाखों तारे टकते ऱोज इस अंबर मे,
धूलकण बन वो जाने किस तारे में,
संगीत गुमशुम जाने किस शून्य में,
नीर नीर सी छलकी इन आँखों में,
जाने रहता है वो अब किस तारे में।
धूलकण बन वो जाने किस तारे में,
संगीत गुमशुम जाने किस शून्य में,
नीर नीर सी छलकी इन आँखों में,
जाने रहता है वो अब किस तारे में।
No comments:
Post a Comment