कह भी दो ना, यूँ मुरझाई हो तुम क्यूँ मौलसिरी?
हर मौसम सदाबहार थे तुम,
प्रकृति के गले का हार थे तुम,
पतझड़ में भी श्रृंगार थे तुम,
खुश्बू लिए बयार थे तुम.....
प्रकृति के गले का हार थे तुम,
पतझड़ में भी श्रृंगार थे तुम,
खुश्बू लिए बयार थे तुम.....
मुरझाई हो क्यूँ, तुम किससे गई हो हार मौलसिरी?
थे कितने ही विशाल तुम,
हर जवाब में थे इक सवाल तुम,
हरितिमा के थे टकसाल तुम,
गंध चिरपुष्प हर साल तुम.....
हर जवाब में थे इक सवाल तुम,
हरितिमा के थे टकसाल तुम,
गंध चिरपुष्प हर साल तुम.....
कुम्हलाई हो क्यूँ, है किसका तुम्हें मलाल मौलसिरी?
खुश्बुओं में थे लाजवाब तुम,
थे शुष्क ऋतु में झरते आब तुम,
काँटों मे थे खिले गुलाब तुम,
जटिल प्रश्न के थे जवाब तुम.....
थे शुष्क ऋतु में झरते आब तुम,
काँटों मे थे खिले गुलाब तुम,
जटिल प्रश्न के थे जवाब तुम.....
मनुहाई हो क्यूँ, क्या टूटे हैं तेरे भी ख्वाब मौलसिरी?
कह भी दो ना, यूँ मुरझाई हो तुम क्यूँ मौलसिरी?
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