कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
बह रही थी ये कश्ती फिर उसी चिनाब में,
देखता हूँ मैं आपको,
कभी मझधार के हिजाब में,
या कभी आइने से बहते कलकल आब में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
ये आ गया हूँ मैं कहाँ, पतवार थामे हाथ में,
हसरतों के आब में,
खाली से किसी दोआब में,
या आपकी यादों के किसी अछूते महराब में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
सूखे से वो फूल, जग परे मेरी ही किताब में,
वो देखते हैं बाग में,
खोए है यादों के सैलाब में,
या संजोए हैं ये सपने, टूटकर अपने आप में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
बह रही थी ये कश्ती फिर उसी चिनाब में,
देखता हूँ मैं आपको,
कभी मझधार के हिजाब में,
या कभी आइने से बहते कलकल आब में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
ये आ गया हूँ मैं कहाँ, पतवार थामे हाथ में,
हसरतों के आब में,
खाली से किसी दोआब में,
या आपकी यादों के किसी अछूते महराब में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
आपके ही ख्वाब में......
सूखे से वो फूल, जग परे मेरी ही किताब में,
वो देखते हैं बाग में,
खोए है यादों के सैलाब में,
या संजोए हैं ये सपने, टूटकर अपने आप में....
कहीं यूँ ही बहते रहे हम बस हसरतों के आब में......
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
सादर आभार आदरणीय
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