आ घेरती हैं, हजारों ख्वाहिशें हर पल,
कहां होता हूं अकेला!
भले ही,भीड़ से खुद को बचाकर,
मींच लूं आंखें,
ये प्यासी ख्वाहिशें, बस रखती हैं जगा के,
दिखाती हैं, अरमानों का मेला,
कहां होता हूं अकेला!
मन ही जिद्दी, जा बसे उस नगर,
यूं लेकर, संग,
ख्वाहिशों के, बहकते चटकते-भरमाते रंग,
हर पल, फिर वही सिलसिला,
कहां होता हूं अकेला!
उनकी इनायत, उनसे शिकायत,
उनके ही, घेरे,
सुबहो और शाम, यूं लगे ख्वाहिशों के डेरे,
वहीं दीप, अरमानों का जला,
कहां होता हूं अकेला!
आ घेरती हैं, हजारों ख्वाहिशें हर पल,
कहां होता हूं अकेला!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
भले ही,भीड़ से खुद को बचाकर,
ReplyDeleteमींच लूं आंखें,
ये प्यासी ख्वाहिशें, बस रखती हैं जगा के,
दिखाती हैं, अरमानों का मेला,
कहां होता हूं अकेला! बहुत सुंदर
शकुंतला
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteभले ही,भीड़ से खुद को बचाकर,
ReplyDeleteमींच लूं आंखें,
ये प्यासी ख्वाहिशें, बस रखती हैं जगा के,
दिखाती हैं, अरमानों का मेला,
कहां होता हूं अकेला!
बहुत बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसच इंसान अकेला कभी होता ही नहीं है, कई विचार, भावनाएं उसके मन में आते-जाते हैं तेजी से, फिर वह अकेला कैसे हुआ
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-5-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4421 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteसही बात है, मन किसी को पल भर के लिए भी अकेला नहीं रहने देता तभी तो हर कोई सत्य से दूर रहता है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteकिसी के अहसासों के साथ वक़्त गुजरना सुखद है परन्तु उससे भी ज्यादा सुख मिलता है खुद के साथ गुजरे लम्हों में।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteकिसी के अहसासों के साथ वक़्त गुजरना सुखद है परन्तु उससे भी ज्यादा सुख मिलता है खुद के साथ गुजरे लम्हों में।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको