धुंधली सी, वो परछाईं,
याद बहुत आई!
काश, वो एहसास, सुखद न होते इतने,
काश, लगते, इतने न वो अपने,
काश, आते न वो सपने,
यूं दूर बैठी, सिमटी वो परछाईं,
याद बहुत आई!
धुंधली सी, वो परछाईं,
याद बहुत आई!
काश, कुम्भला जाते ये खिले एहसास,
काश, न आते, वो मन को रास,
काश, यूं भूल जाते हम,
वो बदली, बरस भी न जो पाई,
याद बहुत आई!
धुंधली सी, वो परछाईं,
याद बहुत आई!
काश, छू न लेती यूं परछाइयाँ हमको,
काश, यूं न बांधती यहां हमको,
काश, बहती न, ये पवन,
कह गई जो, वही इक कहानी,
याद बहुत आई!
धुंधली सी, वो परछाईं,
याद बहुत आई!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय नितीश जी
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