वो कोई खुश्बू,
वो जिन्दा सा, एहसास कोई!
वो इक झौंका,
वो बंधा सा, सांस कोई!
वो बांध गए, किन एहसासों की डोरी से,
शायद चोरी से!
चुपके से, यूं पांव दबे,
जब सांझ ढ़ले,
ढ़लती किरणों संग, उनकी ही बात चले,
रात ढ़ले,
जिन्दा हो, एहसास कोई,
है साथ वही!
वो इक झौंका,
वो बंधा सा, सांस कोई!
वो कब ठहरे, रुक जाए कब, यूं राहों में,
उन्ही, आहों में,
भर दे, हल्की सिहरन,
उस, छांव तले,
जब भोर जगे, फिर उनकी ही बात चले,
राह चले,
झौंकों सी, इक वात कोई,
हो, संग वही!
वो कोई खुश्बू,
वो जिन्दा सा, एहसास कोई!
वो इक झौंका,
वो बंधा सा, सांस कोई!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार 15 अगस्त, 2022 को "स्वतन्तन्त्रा दिवस का अमृत महोत्सव" (चर्चा अंक-4522)
ReplyDeleteपर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर भाव
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद। पटल पर पधारने हेतु आभार...
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