घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....
हर तरफ, एक धुंधली सी नमीं,
भीगी-भीगी, सी ज़मीं,
हैं नभ पर बिखेरे, किसी ने आंचल,
और बज उठे हैं, गीत छलछल,
हर तरफ इक रागिनी!
घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....
पल-पल, धड़कता है, वो घन,
कांप उठता, है ये मन,
झपक जाती हैं, पलकें यूं चौंक कर,
ज्यूं, खड़ा कोई, राहें रोककर,
अजब सी, दीवानगी!
घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....
हो न हो, ये सरगम, है उसी की,
है मद्धम, राग जिसकी,
सुरों में, सुरीली है आवाज जिसकी,
छेड़ जाते हैं, जो सितार मन के,
कर दूं कैसे अनसुनी?
घुल रही है, यूं फिजा में आहट किसी की ....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
DeleteVery nice respected sir
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2022) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक-4510) पर भी होगी।
ReplyDelete--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार
DeleteBahut hi sunder sir
ReplyDeleteThanks
DeleteBahut sunder sir
ReplyDeleteThanks
Deleteप्रकृति का मनोरम चित्रण
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार आदरणीया
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