मेरी अंत:मानस से दूर,
एक शहर अन्जाना सा,
पता नहीं था मुझे, जहां बसती है
मेरे जीवन को उद्वेलित करनेवाली,
मेरी जीवन संगिनी, मेरी प्रेरणा।
वही शहर जहां ईश्वरीय कृपा हुई,
मैं चयन परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ
और जीवन में सफलता की नींव पड़ी,
शायद मेरी प्रेरणा ने याचना की थी इसकी,
वो अनजाना, पर प्रभाव तो तब भी था।
पहली बार जब उसकी झलक देखी,
मन नें अकस्मात् कुछ भावनाएं जगी,
अपनत्व-सानिध्य का एहसास हुआ,
और हो भी क्युँ न, बड़े भाव से उसने,
परोसा सा मनचाहा लाजवाब व्यंजन।
जीवन की जैसे सीमा रेखा खिच गई
तमाम शिखर चूमता गया,
अपनी सारी चिन्ताओं से विमुक्त हो
मै लांघता गया समय की दहलीज,
वो मेरे कुल की चहेती जो बन गई थी।
दो दो पुत्रियों को नवाजा उसने,
स्वयं मे महसूस संपूर्ण कमियों को
पुत्रियों की उपलब्धियों से संजोया,
जीवन की उत्कंठाओं मे बस एक।
खुद को सर्वस्व निछावर कर,
जीवन साथी के आधार को मजबूत बनाना
उन्नति कुल की है जिसकी साधना,
वही है मेरी प्रेरना, मेरी जीवन संगिनी।
मेरी प्रेरणा कृतज्ञ हूँ मैं तुम्हारा ,,,
एक शहर अन्जाना सा,
पता नहीं था मुझे, जहां बसती है
मेरे जीवन को उद्वेलित करनेवाली,
मेरी जीवन संगिनी, मेरी प्रेरणा।
वही शहर जहां ईश्वरीय कृपा हुई,
मैं चयन परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ
और जीवन में सफलता की नींव पड़ी,
शायद मेरी प्रेरणा ने याचना की थी इसकी,
वो अनजाना, पर प्रभाव तो तब भी था।
पहली बार जब उसकी झलक देखी,
मन नें अकस्मात् कुछ भावनाएं जगी,
अपनत्व-सानिध्य का एहसास हुआ,
और हो भी क्युँ न, बड़े भाव से उसने,
परोसा सा मनचाहा लाजवाब व्यंजन।
जीवन की जैसे सीमा रेखा खिच गई
तमाम शिखर चूमता गया,
अपनी सारी चिन्ताओं से विमुक्त हो
मै लांघता गया समय की दहलीज,
वो मेरे कुल की चहेती जो बन गई थी।
दो दो पुत्रियों को नवाजा उसने,
स्वयं मे महसूस संपूर्ण कमियों को
पुत्रियों की उपलब्धियों से संजोया,
जीवन की उत्कंठाओं मे बस एक।
खुद को सर्वस्व निछावर कर,
जीवन साथी के आधार को मजबूत बनाना
उन्नति कुल की है जिसकी साधना,
वही है मेरी प्रेरना, मेरी जीवन संगिनी।
मेरी प्रेरणा कृतज्ञ हूँ मैं तुम्हारा ,,,