बोलो ना, नैन तले, कैसे ढ़ल जाती है शाम!
ढ़लते वक्त का आँचल, कौन लेता है थाम!
क्षितिज पर, थककर, कौन हो जाता है मौन!
शायद, घुल जाती हैं, दो नैनों में काजल!
और, क्षितिज पर, घिर आता है बादल,
वक्त सभी, हो जाते हों, बिंदिया के नाम!
बोलो ना, नैन तले, कैसे ढ़ल जाती है शाम!
कदम-ताल करते, कैसे, थम जाते हैं वक्त!
बहते रक्त, नसों में, बरबस, क्यूं होते हैं सुन्न!
शायद, भाल पर, चमक उठते हैं गुलाल!
क्षितिज पर, बिखर जाते हैं सप्त-रंग,
और काजल, कर जाती हों, काम तमाम!
बोलो ना, नैन तले, कैसे ढ़ल जाती है शाम!
महज, संयोग नहीं, यूं, दिवस का ढ़लना!
यूं, पल से पल का मिलना, पल-पल ढ़लना!
शायद, आरंभ तुम हो, अंत तुम ही तक!
नैनों में काजल, बहता हो तुम्हीं तक,
बीत चला, फिर ये लम्हा बस तेरे ही नाम!
बोलो ना, नैन तले, कैसे ढ़ल जाती है शाम!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
महज, संयोग नहीं, यूं, दिवस का ढ़लना!
ReplyDeleteयूं, पल से पल का मिलना, पल-पल ढ़लना!
शायद, आरंभ तुम हो, अंत तुम ही तक!
नैनों में काजल, बहता हो तुम्हीं तक,
बीत चला, फिर ये लम्हा बस तेरे ही नाम! बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-06-2022) को चर्चा मंच "सियासत में शरारत है" (चर्चा अंक-4475) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसब सुनिश्चित है ..... बन मानव मन ही चिंतित है .... सुन्दर रचना .
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया संगीता जी
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 जून 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया पम्मी जी।।।
Deleteसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👍
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अनीता जी
Deleteवाकई में बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रकाश जी
Deleteवाह बहुत ही मनोरम सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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