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Friday, 23 August 2019

अनुगामिनी

मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!

खुश्बू सी हवाओं में, घुलते हो तुम,
इक फूल सा, खिलते हो तुम,
देखता हूँ बस तुम्हें, जागने से पहले,
दिन ढ़ले, महसूस होते हो तुम,
हो इक रौशनी या हो खिली चाँदनी,
रंग हो या हो कोई रागिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!

मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!

हर घड़ी एक दस्तक, देते हो तुम,
मेरी तन्हाईयों में, होते हो तुम,
अनथक सी बातें, सवालों से पहले,
फिर शिकायतें, करते हो तुम,
हो इक यामिनी या दमकती दामिनी,
रूप हो या हो कोई कामिनी,
या जन्मों की हो, तुम अनुगामिनी!
महज ये इक, ख्याल तो नहीं!

मन की देहरी पर, रोज मिलते हो तुम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा