बड़ा ही, संगदिल सा, ये काफिला,
अपनी ही धुन चला!
कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का,
या छोड़ दो, ये काफिला,
पलकों तले, रुक ना जाए ये सफर,
खत्म हो सिलसिला!
अनसुने से, धड़कनों के, गीत कितने,
बाट जोहे, बैठे, मीत कितने,
किनारों पर, अनछुए से प्रशीत कितने,
उन सबको, पहले लूं बुला,
चले, फिर काफिला!
शायद, मुझको संजोए, यादों में कोई,
बैठी कहीं, ख्यालों में खोई,
बुलाए मुझको, हरपल सपनों में कोई,
मीत वो ही, कोई ढ़ूंढ़ ला,
बढ़े, फिर काफिला!
जरा मैं, समझ लूं, हवाओं के इशारे,
सुन लूं धड़कनों के गीत सारे,
गूंज कर वादियाँ, मुझको क्यूं पुकारे,
यूं, रह जाए न कोई गिला,
चले, फिर काफिला!
कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का,
या छोड़ दो, ये काफिला,
कहीं अनमना, ना हो चले सफर,
खत्म हो सिलसिला!
बड़ा ही, संगदिल सा, ये काफिला,
अपनी ही धुन चला!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Bahut sunder
ReplyDeleteThanks Shakuntala ji
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 जनवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार ....
Deleteसुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👌💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteभावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteबहुत सुंदर,अपने धुन में मगन सी प्यारी रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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