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Tuesday 17 January 2017

पलने दो ख्वाब

चुप से हैं कुछ ख्वाब, कुछ इनको कह जाने दो....

गहरी सी दो आँखों में, ख्वाबों को पलने दो,
कुछ रंग सुनहरे मुझको, ख्वाबों मे भर लेने दो,
तन्हाई संग मुझको, इन पलकों में रह लेने दो,
बुत बना बैठा हूँ, ख्वाब जरा बुन लेने दो....

गहरी सी हैं दो आँखें, डूब न जाए ख्वाब मेरे,
इन चंचल से दो नैनों में, टूट न जाए ख्वाब मेरे,
पलकें यूँ न मूंदो, कहीं सो जाए न ख्वाब मेरे,
ख्वाब नए हरपल, जरा साँसों में पिरोने दो.....

सतरंगी से कुछ ख्वाब, इन्द्रधनुष बन छाने दो,
कहीं टूटे ना ये ख्वाब, इन्हें हकीकत बन जाने दो,
नन्हे-नन्हे से ख्वाब, इन्हे खिल कर मुस्काने दो,
फिर देखें हम ख्वाब, आँखों को सहलाने दो....

गुमसुम से हैं कुछ ख्वाब, कुछ इनको कह जाने दो....

Wednesday 29 June 2016

ख्याल

तुम ख्वाबों से निकलकर ख्यालों में गुजरती हो कहीं!

तब रूह को छू जाती हैं बरबस यादें तेरी,
जल उठते है माहताब दिल के अंधियारे में कहीं,
महक उठती है ख्यालों से सूनी सी ये तन्हाई,
मद्धम सुरों में उभरता आलाप एक सुरमई।

तुम ख्वाबों से निकलकर ख्यालों में गुजरती हो कहीं!

मन पूछने लगता है पता खुद से खुद का ही,
भूल सा जाता है ये मन के तुम कहीं हो ही नहीं,
बस इक परछाईं सी हो तुम कोई अक्स नहीं,
गुमसुम सा विकल ये मन मानता ही नहीं।

तुम ख्वाबों से निकलकर ख्यालों में गुजरती हो कहीं!

राख बन कर ही सही उर रहीं हैं यादें तेरी,
गहरा धुआँ सा छा रहा हैं मन के गगन पर मेरी,
क्या मिलोगे मुझे उस क्षितिज के किनारे कहीं,
इस रूह की गहराईयों में तुम छुपे हो कहीं।

तुम ख्वाबों से निकलकर ख्यालों में गुजरती हो कहीं!

Sunday 12 June 2016

छवि तुम्हारी

छवि लिए कुछ तारों सी उर में तुम हो समाए,
पलकों में, प्राणों में स्मृति बन कर तुम हो आए.....

संचित कर लूँ मैं चंचलता इन नैनों की नैनों में,
महसूस करूँ मैं अरूणोदय तेरे चेहरे की आभा में,
देखूँ मैं रजनी की तम सी परछाई तेरे ही जूड़े में,

स्वप्नमय आभा लिए सपनों में तुम हो समाए,
नींदों मे, ख्वाबो में जागृति बन कर तुम्ही हो छाए ....

संचित कर लूँ मैं हाला तेरे अधरों की प्याली में,
महसूस करूँ मैं रंग जीवन के तेरे नैनों की लाली में,
देखूँ मैं ख्वाब सुनहरे तेरे आँचल की हरियाली में,

मधुर राग कोयल की सपनों मे तुमने ही गाए,
स्वर में, काया में विस्मित छाया सी तुम गहराए....,

Saturday 16 April 2016

ख्वाब की बातें

वो ख्वाब, अाधा अधूरा, न जाने कहाँ इन पलकों में?

कुछ सुनहरे ख्वाब, रख छोड़े थे मैनें सहेज कर,
पलकों के पीछे लिपटे गीले कोरों में रख कर,
सो जाती थी वो, जागी पलकों में रो-रोकर,
फिर कभी जग जाती वो, बंद पलकों में हँस कर।

ख्वाब वो वर्षों से चुप, पलकों के गीले छावन में,
सूख रही हो, टूटी सी टहनी जैसे आँगन में,
जा बैठी हो कोई तितली, एक कटीली झाड़ी में,
अधूूरा ख्वाब वो, तिलमिला सा उठता आँखों में।

सोचता हूँ अब, काँच से ख्वाब पाले थे क्युँ मैंने,
ओस की बूँदें, क्या ठहरी है कभी बादल में?
संगीत अधूरा सा, क्या झंकृत हो पाया है जीवन में?
बरस परती हैं ये आँखें, टूटे ख्वाबो के संसर्ग में।

वो सुनहरा ख्वाब, अब अधूरा, न जाने कहाँ पलकों में?

Thursday 14 April 2016

चुरा लुँगा तुमको तुम्ही से

हम सफर में हैं आपके, तू ही इस सफर की है मंजिल।

यूँ चुरा लूँगा तुम्ही से मैं तुमको,
ले जाऊँगा फिर तन्हाईयों में कही तुमको,
पूछेंगी पता तुम्हारा ये दुनियाँ कभी,
मेरे दिल की राहों का पता बता देना तुम उनको।

आऊँगा रोज ही तेरी तन्हाईयों मे मैं,
चुरा लुंगा तेरे ख्वाब सभी तेरी आँखों से मैं,
देखोगे कभी ख्वाब तो नजर आऊँगा मैं,
तेरे दिल की जज्बातों में महल बना जाऊँगा मैं।

कहता है दिल मुझसे आ के कभी मिल,
पूछ ले नजरों से मेरी क्युँ चुराए है तेरा दिल,
रास्ते प्यार के ये तू ही है मेरी मंजिल,
ख्वाबों में रोज मिली अब हकीकत मे आके मिल।

चुरा ले तू मुझसे ही मुझको, हम यहीं जाएँ कहीं मिल।