निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
सहज हों कैसे, विकर्षण के ये क्षण!
ये दिल, मानता नहीं,
कि, हो चले हैं, वो अजनबी,
वही है, दूरियाँ,
बस, प्रभावी से हैं फासले!
यूँ ही, हो चले, तमाम वादे खोखले!
गुजरना था, किधर!
पर जाने किधर, हम थे चले,
वही है, रास्ते,
पर, मंजिलों से है फासले!
हर सांझ, बहक उठते थे, जो कदम,
बहके हैं, आज भी,
टूटे हैं प्यालों संग, साज भी,
वहीं है, सितारे,
बस, गगन से हैं फासले!
मध्य सितारों के, छुपे अरमान सारे,
उन बिन, बे-सहारे,
चल, अरमान सारे पाल लें,
सब तो हैं वहीं,
यूँ सताने लगे हैं फासले!
निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
सहज हों कैसे, विकर्षण के ये क्षण!
ये दिल, मानता नहीं,
कि, हो चले हैं, वो अजनबी,
वही है, दूरियाँ,
बस, प्रभावी से हैं फासले!
यूँ ही, हो चले, तमाम वादे खोखले!
गुजरना था, किधर!
पर जाने किधर, हम थे चले,
वही है, रास्ते,
पर, मंजिलों से है फासले!
हर सांझ, बहक उठते थे, जो कदम,
बहके हैं, आज भी,
टूटे हैं प्यालों संग, साज भी,
वहीं है, सितारे,
बस, गगन से हैं फासले!
मध्य सितारों के, छुपे अरमान सारे,
उन बिन, बे-सहारे,
चल, अरमान सारे पाल लें,
सब तो हैं वहीं,
यूँ सताने लगे हैं फासले!
निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दिव्या जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को "सयानी सियासत" (चर्चा अंक-3756) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी।
Deleteवाह सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय।
Deleteमध्य सितारों के, छुपे अरमान सारे,
ReplyDeleteउन बिन, बे-सहारे,
चल, अरमान सारे पाल लें,
सब तो हैं वहीं,
यूँ सताने लगे हैं फासले!
वाह!! बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन,सादर नमन आपको
आपके भाव प्रवण टिप्पणी हेतु आभारी हूँ आदरणीया कामिनी जी। । धन्यवाद।
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रोली जी। आभारी हूँ। बहुत दिनों बाद पुनः स्वागत है आपका।
Deleteनिष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
Deleteविलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
पुरुषोत्तम जी प्रेम के अन्तरंग पलों से दूर फासलों से उपजी पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति !ये सिर्फ आप लिख सकते हैं | शुभकामनाएं और आभार |
शब्द कम होंगे आपकी प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त करने हेतु। भावों को चुनकर समेटना भी संभवन हो। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।
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