Saturday 16 January 2016

सरसों के फूल

सरसों के फूल
 लुभा गए मन को,
दूर-दूर तक,
धरा पर,
प्रीत बन,
पीली चादर फैला गए,
हरितिमा पर छा गए,
 लहलहा गए,
पीत रंग
मन को मेरे भा गए।

श्रृंगार
लुभावन
वसुधा को दे गए,
आच्छादित हुए
धरा के
अंग-अंग,
गोद भराई कर गए,
 मधु-रस की
मधुर धार,
भौरों को दे गए,
मुक्त सादगी
सरसों की
मन को हर गए।

कुछ पल
मैं भी संग बिताऊँ,
कोमलता
तनिक
स्पर्श मैं भी कर जाऊँ,
दामन में,
भर लूँ,
निमित्त हुए
चित मेरे विस्मित,
कर गए,
सरसों के फूल,
मेरे मन में बस गए।

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