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Thursday, 19 December 2019

कैसा जीवन

उड़ चले कहीं, डाल के पंछी सारे!

कल तक थे, घौसले हर डाल पर,
चहकते थे वो चूजे, पंछी की हर बात पर,
मुस्कान पंछी की थी निराली,
झूल जाती थी, किलकारियों से डाली,
गुम हो चले, वो गूंज सारे!

उड़ चले कहीं, डाल के पंछी सारे!

विलीन हो चले , वो विहँसते पल,
स्वर-विहीन हुए, वो कलकल से हलचल,
दीन-हीन, हो चली है डाली,
सुर-विहीन हो चली, सुबह की लाली,
बिखर गए, वो गीत सारे!

उड़ चले कहीं, डाल के पंछी सारे!

सिर्फ तिनकों के, बचे अवशेष,
टूटी पंखुड़ी सी, बिखरी हैं कुछ यादें शेष,
रिक्त सी, लग रही वो डाली,
कुछ सिक्त सी, हो चली है हरियाली,
बदले हैं, वो संगीत सारे!

उड़ चले कहीं, डाल के पंछी सारे!

अनबुझ सा, ये कैसा है जीवन,
मिलन के हैं दो पल, उम्र भर है विछड़न,
टूटती है यूँ ही, दिल की डाली,
क्यूूँ छूटती है मेहंदी, उतरती है लाली,
बदल जाते हैं, रंग सारे!

ज्यूँ उड़ते हैं, डाली के पंछी सारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)