Sunday, 13 February 2022

क्या फिर!

क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!

कहीं न कहीं,
उम्मीद तो, इक रहेगी बनी,
इक आसरा, टिमटिमाता सा, इक सहारा,
एक संबल,
कि, कोई तो है, उस किनारे!

क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!

अब जो कहीं,
बिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
रखना याद,
कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!

क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!

झूठा ही सही,
आसरा, इक, कम तो नहीं,
टूट जाए, भले कल, कल्पना की इमारत,
पले चाहत,
कि, कोई तो है, मेरे भरोसे!

क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

18 comments:

  1. आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

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  3. वाह !
    'जज्ब-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा अल्ला,
    कच्चे धागे में चले आएँगे, सरकार बंधे.'

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

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  4. Replies
    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

      Delete
  5. भावपूर्ण हृदय स्पर्शी रचना

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

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  6. Replies
    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।

      Delete
  7. झूठा ही सही,
    आसरा, इक, कम तो नहीं,
    टूट जाए, भले कल, कल्पना की इमारत,
    पले चाहत,
    कि, कोई तो है, मेरे भरोसे!
    -----
    सुंदर रचना, आस ही संजीवनी है जीवन की।
    ---
    प्रणाम
    सादर।

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
      अभी-अभी, जैसे ,
      फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....

      Delete
  8. अब जो कहीं,
    बिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
    बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
    याद रखना,
    कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!

    क्या, फिर मिलोगे कहीं!
    समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
    बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।

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    Replies
    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
      अभी-अभी, जैसे ,
      फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....

      Delete
  9. अब जो कहीं,
    बिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
    बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
    याद रखना,
    कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!
    वाह !

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    1. ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
      अभी-अभी, जैसे ,
      फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....

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