क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
कहीं न कहीं,
उम्मीद तो, इक रहेगी बनी,
इक आसरा, टिमटिमाता सा, इक सहारा,
एक संबल,
कि, कोई तो है, उस किनारे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
अब जो कहीं,
बिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
रखना याद,
कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
झूठा ही सही,
आसरा, इक, कम तो नहीं,
टूट जाए, भले कल, कल्पना की इमारत,
पले चाहत,
कि, कोई तो है, मेरे भरोसे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteवाह !
ReplyDelete'जज्ब-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा अल्ला,
कच्चे धागे में चले आएँगे, सरकार बंधे.'
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteबहुत भावपूर्ण !
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteभावपूर्ण हृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteअद्भुत
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteझूठा ही सही,
ReplyDeleteआसरा, इक, कम तो नहीं,
टूट जाए, भले कल, कल्पना की इमारत,
पले चाहत,
कि, कोई तो है, मेरे भरोसे!
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सुंदर रचना, आस ही संजीवनी है जीवन की।
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प्रणाम
सादर।
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteअभी-अभी, जैसे ,
फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....
अब जो कहीं,
ReplyDeleteबिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
याद रखना,
कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteअभी-अभी, जैसे ,
फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....
अब जो कहीं,
ReplyDeleteबिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
याद रखना,
कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!
वाह !
ह्रदयतल से आभार और शुभकामनाएं।।।।
Deleteअभी-अभी, जैसे ,
फिर से खुश्बू वही, बिखरा हो ऐसे ....