कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!
इक दीप जला है, घर-घर,
व्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
मानव, सपनों का मारा,
कितना बेचारा,
चकाचौंध, राहों से हारा,
शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
उम्मीदों की प्रभात!
कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!
कतरा-कतरा, ये लहू जला,
फिर कहीं, इक नन्हा सा दीप जला,
निर्मम, वो पवन झकोरा,
तिमिर गहराया,
व्याकुल, लौ कुम्हलाया,
मन अधीर, धारे कब तक ये धीर!
कितनी दूर प्रभात!
कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!
तम के ही हाथों, तमस बना,
इन अंधेरी राहों पर, इक हवस पला,
बुझ-बुझ, नन्हा दीप जला,
रातों का छला,
समक्ष, खड़ा पराजय,
बदले कब, इस जीवन का आशय!
अधूरी, अपनी बात!
कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!
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दीपावली का दीप, इक दिवा-स्वप्न दिखलाता गया इस बार। कोरोना जैसी संक्रमण, विश्वव्यापी मंदी, विश्वयुद्ध की आशंका, सभ्यताओं से लड़ता मानव, मानव से ही डरता मानव आदि..... मन में पलती कितनी ही शंकाओं और इक उज्जवल सभ्यता की धूमिल होती आस के मध्य जलता, इक नन्हा दीप! इक छोटी सी लौ....गहरी सी ये रात.... और पलता इक दिवास्वप्न!
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- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Wonderful....
ReplyDeleteThanks
Deleteशुभ हो दीप पर्व मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 16 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteशायद ले आए,एक नन्हा दीपक ! उम्मीदों का प्रभात ! बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-20) को "बदलो जीवन-ढंग"'(चर्चा अंक- 3888) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
सादर आभार
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शुभा जी।
Deleteउत्कृष्ट चिंतन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी।
Deleteइक दीप जला है, घर-घर,
ReplyDeleteव्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
मानव, सपनों का मारा,
कितना बेचारा,
चकाचौंध, राहों से हारा,
शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
उम्मीदों की प्रभात!
.. उम्मीद ही है जो जिन्दा रखती है हर हाल में इंसान को
बहुत अच्छी चिंतन-मनन प्रस्तुति
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
आशा जगाती सुन्दर रचना| दीपपर्व की शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
बेहतरीन रचना !!!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
बहुत ही गहरी है यह बात । अति सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
इक दीप जला है, घर-घर,
ReplyDeleteव्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
मानव, सपनों का मारा,
कितना बेचारा,
चकाचौंध, राहों से हारा,
शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
उम्मीदों की प्रभात!...बहुत ही सुंदर सृजन सर।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
सुन्दर व प्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteचित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार मनोज कायल जी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDelete👌
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