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Wednesday, 21 July 2021

चली रे

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

खुद भटके, भटकाए, कौन दिशा ले जाए,
बहा उस ओर, कहाँ ले जाए,
जाने, कौन गली रे!

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

बिछड़े गाँव सभी, बह गए बंधे नाव सभी,
तिनके-तिनके, बिखरे मन के,
खाली, हर डाली रे!

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

नई सी हर बात, करे है मन के पात-पात,
नव-स्वप्न तले, ढ़ल जाए रात,
इक साँस, ढ़ली रे!

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

पीछे छूट चले, कितनी बातें, कितने बंध,
निशिगधा के, वो महकाते गंध,
खोई, बंद कली रे!

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

वो डगर, वो ही घर, चल, वापस ले चल,
या, ले आ, वो सारे बिछड़े पल,
वही, नेह गली रे!

चली रे, ये पुरवा, कहाँ ले चली रे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 22 November 2020

खाली कोना

खाली सा, 
कोई कोना तो होगा मन का!

तेरा ही मन है, 
लेकिन!
बेमतलब, मत जाना मन के उस कोने,
यदा-कदा, सुधि भी, ना लेना,
दबी सी, आह पड़ी होगी,
बरस पड़ेगी!
दर्द, तुझे ही होगा,
चाहो तो,
पहले,
टटोह लेना,
उजड़ा सा, तिनका-तिनका!

खाली सा, 
कोई कोना तो होगा मन का!

तेरा ही दर्पण है, 
लेकिन!
टूटा है किस कोने, जाना ही कब तूने,
मुख, भूले से, निहार ना लेना!
बिंब, कोई टूटी सी होगी,
डरा जाएगी!
पछतावा सा होगा,
चाहो तो,
पहले, 
समेट लेना,
बिखरा सा, टुकड़ा-टुकड़ा!

खाली सा, 
कोई कोना तो होगा मन का!

सुनसान पड़ा ये, 
लेकिन!
विस्मित तेरे पल को, संजोया है उसने,
संज्ञान, कभी, उस पल की लेना!
गहराई सी, वीरानी तो होगी,
चीख पड़ेगी!
पर, एहसास जगेगा,
चाहो तो,
पहले, 
संभाल लेना,
सिमटा सा, मनका-मनका!

खाली सा, 
कोई कोना तो होगा मन का!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)