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Thursday, 23 June 2016

चिरन्तन प्रेम तुम

चिरन्तर प्रेम अनुरागिनी, सजल पुतलियों मे तेरी छवि,
हो चिरन्तन प्रेम तुम.....

असीम घन सी वो, है चाह मुझे जिस छवि की,
सजल इन पुतलियों में, है अमिट छाप बस उसी की,
प्राण मेरे पल रहे, अनन्त चाह बस उस छवि की,
पर असीम सी वो, राह तकता रहा मैं जिस छवि की।

चित्र अमिट सी छपी है, नैनों में बस उसी की,
श्वास में उनको छिपाकर, राह तकुँ मैं बस उसी की,
असीम घन सी शून्य मन में ही वो विचर रही,
मन के मिलन मंदिर में सजी सदा से ही है वो छवि।

यादों में पहर सूने बिता, किस प्रांत में वो जा छुपी,
मैं मिटूँ प्रिय की याद में, मिटी ज्यों तप्त रक्त दामिनी,
दीप सा युग-युग जलूँ, जली ज्युँ रूप वो चाँदनी,
चिरन्तर प्रेम अनुरागिनी, सजल पुतलियों मे तेरी छवि।

हो, मेरी चिरन्तन प्रेम तुम........

Sunday, 20 March 2016

दो पुतलियाँ आँखों की

आँखों की ये दो पुतलियाँ,
परिभाषित करती हैं प्रेम को जैसे,
जीवन भर मिल पाते नही एक दूसरे से,
विस्मयकारी हैं तारतम्य इन दोनों के।

एक के बिन रहती अधूरी दूसरी,
नैन सुन्दर से कहलाते दोनों मिलकर ही,
पूर्णता नजरों की दो पुतलियाँ मिल कर ही 
आभास गहराई का दो पुतलियों से ही।

चलते है एक स्वर में दोनो ही,
साथ साथ खुलते ये बंद होते साथ ही,
जीवन के सुख-दुख की घड़ियाँ गिनते साथ ही,
नीर छलकते दो पुतलियो में साथ ही।

अलग-अलग पर वो अंजान नही,
दूरी दोनों में पर नजरों में मतभेद नहीं,
शिकवा शिकन शिकायत इनकी लबों पर नहीं,
एहसास परस्पर प्रेम के ये मरते नही।