Sunday, 20 March 2016

दो पुतलियाँ आँखों की

आँखों की ये दो पुतलियाँ,
परिभाषित करती हैं प्रेम को जैसे,
जीवन भर मिल पाते नही एक दूसरे से,
विस्मयकारी हैं तारतम्य इन दोनों के।

एक के बिन रहती अधूरी दूसरी,
नैन सुन्दर से कहलाते दोनों मिलकर ही,
पूर्णता नजरों की दो पुतलियाँ मिल कर ही 
आभास गहराई का दो पुतलियों से ही।

चलते है एक स्वर में दोनो ही,
साथ साथ खुलते ये बंद होते साथ ही,
जीवन के सुख-दुख की घड़ियाँ गिनते साथ ही,
नीर छलकते दो पुतलियो में साथ ही।

अलग-अलग पर वो अंजान नही,
दूरी दोनों में पर नजरों में मतभेद नहीं,
शिकवा शिकन शिकायत इनकी लबों पर नहीं,
एहसास परस्पर प्रेम के ये मरते नही।

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