Thursday, 23 June 2016

चिरन्तन प्रेम तुम

चिरन्तर प्रेम अनुरागिनी, सजल पुतलियों मे तेरी छवि,
हो चिरन्तन प्रेम तुम.....

असीम घन सी वो, है चाह मुझे जिस छवि की,
सजल इन पुतलियों में, है अमिट छाप बस उसी की,
प्राण मेरे पल रहे, अनन्त चाह बस उस छवि की,
पर असीम सी वो, राह तकता रहा मैं जिस छवि की।

चित्र अमिट सी छपी है, नैनों में बस उसी की,
श्वास में उनको छिपाकर, राह तकुँ मैं बस उसी की,
असीम घन सी शून्य मन में ही वो विचर रही,
मन के मिलन मंदिर में सजी सदा से ही है वो छवि।

यादों में पहर सूने बिता, किस प्रांत में वो जा छुपी,
मैं मिटूँ प्रिय की याद में, मिटी ज्यों तप्त रक्त दामिनी,
दीप सा युग-युग जलूँ, जली ज्युँ रूप वो चाँदनी,
चिरन्तर प्रेम अनुरागिनी, सजल पुतलियों मे तेरी छवि।

हो, मेरी चिरन्तन प्रेम तुम........

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