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Wednesday, 1 June 2022

शक


बेशक दुश्मन बड़ा, मन इक शक भरा!

उस मन, पल न सका इक पौधा विश्वास का,
भरोसे का, उग न सका, इक बीज,
शक, बेशक बांझ करे मन को,
डसे, पहले खुद को,
फिर, रह-रह, दे मन को दर्द बड़ा!

बेशक दुश्मन बड़ा, मन इक शक भरा!

उजड़ी, फुलवारी, कितनी ही, मन की क्यारी,
मुरझाए, आशाओं के, वृक्ष सभी,
बिखर चले, मन उप-वन सारे,
सूख चली, वो नदी,
जो सदियों, पर्वत के, शीश चढ़ा!

बेशक दुश्मन बड़ा, मन इक शक भरा!

सशंकित मन, विचरे निर्मूल शंकाओं के वन,
पाले, बर-बस, निरर्थक आशंका,
विराने, पथ पर, घन में घिरा,
ढूंढ़े, अपना ही पग,
अनिर्णय के, उन राहों पर खड़ा!

बेशक दुश्मन बड़ा, मन इक शक भरा!

निर्मल इक संसार, इस, बादल के उस पार,
बहती है, शीतल सी, एक पवन,
शक के बादल, उड़ जाने दे,
मन, जुड़ जाने दे,
टूट न जाए शीशा, विश्वास भरा!

बेशक दुश्मन बड़ा, मन इक शक भरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)