वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!
कौन जाने, क्या हो अगले पल!
समतल सी, इक प्रवाह हो,
या सुनामी सी हलचल!
अप्रत्याशित सी, इसकी हर बात!
वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!
प्राण फूंक दे या, ये हर ले प्राण!
ये राहें कितनी, हैं अंजान!
अति-रंजित सा दिवस,
या इक घात लगाए, बैठी ये रात!
वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!
जाल बिछाए, वक्त के ये मोहरे,
कब धुंध छँटे, कब कोहरे,
कब तक हो, संग-संग,
कब संग ले उड़े, इक झंझावात!
वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!
कोरोना, वक्त का धूमिल होना,
पल में, हाथों से खो देना,
हँसते-हँसते, रो देना,
रहस्यमयी दु:खदाई, ये हालात!
वक्त की, ये रक्तरंजित बिसात,
शह दे या मात!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)