Monday, 30 November 2020

अबकी बारह में

दु:ख के बादल में, अब चुनता है क्या रह-रह,
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

वो बीत चुका, अच्छा है, जो वो रीत चुका,
अब तक, लील चुका है, सब वो,
जीत चुका है, सब वो,
लाशों के ढ़ेरों में, अब चुनता है क्या रह-रह!
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

सपने तोड़े, कितनी उम्मीदों नें दामन छोड़े,
जिन्दा लाशों में, शेष रहा क्या?
अवरुद्ध हो रही, साँसें,
बिखरे तिनकों में, अब चुनता है क्या रह-रह!
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

2020 का, ये अन्तिम क्षण, जैसे इक रण,
खौफ-जदा था, इसका हर क्षण,
बाकि है, सह या मात,
इन अनिश्चितताओं में, चुनता है क्या रह-रह!
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

वैसे तो, निराशाओं में ही पलती है आशा,
बेचैनी ही, ले आती चैन जरा सा,
रख ले तू भी, प्रत्याशा!
वैसे इस पतझड़ में, तू चुनता है क्या रह-रह!
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

दु:ख के बादल में, अब चुनता है क्या रह-रह,
अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

26 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!
    ना पुरुषोत्तम जी, "अब तक बारह में से जीत लिए हमने ग्यारह !!!"
    एक और बचा है, वह भी जीत लेंगे।
    नए दशक में आशाओं संग कदम रखेंगे।
    मैंन स्वयं बहुत ज्यादा आर्थिक हानि सही है इस वर्ष, कई योजनाओं पर पानी फिर गया, कुछ परिचितों और अपनों को हमेशा के लिए खोया, पति की कंपनी और काम बंद है, लोगों के असली चेहरे सामने आ गए....
    फिर भी यही कहूँगी - सारा परिवार साथ है और जान है तो जहान है। हे ईश्वर ! तेरा शुक्रिया !
    वैसे तो, निराशाओं में ही पलती है आशा,
    बेचैनी ही, ले आती चैन जरा सा,
    रख ले तू भी, प्रत्याशा!
    वैसे इस पतझड़ में, तू चुनता है क्या रह-रह...
    इस पतझड़ के बाद नई कोंपलें फूटेंगी।

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    1. आदरणीया मीना जी, कम ही शब्दों में इस दशक या इस सदी की सारी व्यथा उड़ेल दी है आपने। थोड़े आहत जरूर हुए हम, परन्तु चिन्ता न करें, एक सुखद सवेरा बिल्कुल सामने है।
      शुभकामनाओं सहित।।।।।

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  3. बहुत सुन्दर।
    गुरु नानक देव जयन्ती
    और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय।
      आपको भी गुरु नानक देव जयन्ती और कार्तिक पूर्णिमा की शुभकामनाएँ।

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  4. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-12-20) को "अपना अपना दृष्टिकोण "'(चर्चा अंक-3902) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  5. आदरणीय सर , सब से पहले तो मेरे ब्लॉग पर आ कर मुझे अपना आशीष देने के लिए आपका हृदय अत्यंत आभार और प्रणाम। आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का अवसर मिला, आ कर बहुत अच्छा लगा।
    वर्ष २०२० की कठिन और आशंकित परिस्थिति को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया आपने। इस वर्ष में सच में पुरे संसार ने ही बहुत दुःख और पीड़ा देखी है पर अब यह पीड़ा खत्म हो जायेगी, मेरा मन कहता है की कोरोना काल बहुत जल्दी चला जाएगा और फिर भगवान जी ने हम सब की रक्षा की है और आगे भी करेंगे।
    वैसे इस साल कुछ अच्छी चीज़ें भी हुई है, माता प्रकृति ने खुद को पूरी तरह स्वस्थ क्र लिया है और हम सब को बहुत कुछ सीखने को मिला और यह साल मेरे लिए एक कारण से बहुत शुभ है क्यूंकि आप सभी बड़ों का प्रोत्साहन और आशीष मुझे इसी वर्ष मिला , अब कामना करती हूँ कि आगे भी मिलेगा। बहुत ही सुंदर रचना के लिए आपका हृदय से आभार और पुनः प्रणाम।

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    1. आ.अनन्ता जी, आप में प्रचुर क्षमता और प्रतिभा है। आपकी लगन व विनम्रता आपको सफलता के पथ पर बहुत दूर ले जाएगी। आपके सफलता की कामना सहित आभार।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शिवम जी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया विभा जी।

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  8. बहुत सुंदर पंक्तियाँ। हम यही उम्मीद करते हैं कि नया साल कोरोना मुक्त होगा।

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  9. बिल्कुल महोदय। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नीतीश जी।

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  10. वाह !पुरुषोत्तम जी ,सुंंदर भावों से सजी रचना । एक बचा है वह भी बीत ही जाएगा ,इन ग्यारह में कितने अपनों को खोया है ....। जो आया है वो जाएगा ...आशा तो यही है कि ये कोरोना भी जाएगा ।

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    1. आशा की एक लौ तो जलनी ही चाहिए।
      बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शुभा जी।

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    1. शुक्रिया आदरणीय शान्तनु जी। आभार।

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  12. 2020 का, ये अन्तिम क्षण, जैसे इक रण,
    खौफ-जदा था, इसका हर क्षण,
    बाकि है, सह या मात,
    इन अनिश्चितताओं में, चुनता है क्या रह-रह!
    अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

    वैसे तो, निराशाओं में ही पलती है आशा,
    बेचैनी ही, ले आती चैन जरा सा,
    रख ले तू भी, प्रत्याशा!
    वैसे इस पतझड़ में, तू चुनता है क्या रह-रह!
    अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

    दु:ख के बादल में, अब चुनता है क्या रह-रह,
    अबकी, बारह में, हार चले हम ग्यारह!

    बहुत उम्दा सृजन।
    निश्चय ही संघर्ष में हम जीतेंगे।
    सादर।

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    1. प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया आदरणीया सधु जी।

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