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Friday, 3 August 2018

लिखता हूं अनुभव

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, क्यूंकि महसूस करता हूं,
जागी है अब तक आत्मा मेरी,
भाव-विहीन नहीं, भाव-विह्वल हूं,
कठोर नहीं, हृदय कोमल हूं,
आ चुभते हैं जब, तीर संवेदनाओं के,
लहू बह जाते हैं शब्दों में ढ़लके,
लिख लेता हूं, यूं संजोता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

मैं लिखता हूं, जब विह्वल हो उठता हूं,
जागृत है अब तक इन्द्रियाँ मेरी,
सुनता हूं, अभिव्यक्त कर सकता हूं,
संजीदा हूं, संज्ञा शून्य नहीं मैं,
झकझोरती हैं, मुझे सुबह की किरणें,
ले आती हैं, सांझ कुछ सदाएं,
सुन लेता हूं, यूं बुन लेता हूं अनुभव...

निरंतर शब्दों मे पिरोता हूं अपने अनुभव....

Friday, 19 February 2016

प्रश्न - क्या लिखूँ?

सोचता हूँ कि आज मैं क्या लिखूँ?

रास्तों के धूल लिखूँ या पत्थरों के फूल लिखूँ,
जिन्दगी के प्रश्न लिखूँ या जिन्दगी को जवाब लिखूँ,
नग्मा ए नज्म लिखूँ या कुरान ए आयत लिखूँ,
तुमसे शिकवा लिखूँ या तुम्हारी शिकायत लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज मैं क्या लिखूँ?

रात के ख्वाब लिखूँ या दिन के गुलाब लिखूँ,
पत्तियों की सरसराहट लिखूँ या आपकी घबराहट लिखूँ,
चांदनी रात लिखूँ या स्याह अंधेरी रात लिखूँ,
अपने जज्बात लिखूँ या आपके ख्वाब लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज क्या लिखूँ?

बाग के फूल लिखूँ या गूलाब के कांटें लिखूँ,
पंछियों की चहचहाहट लिखूँ या पाँव की आहट लिखूँ,
सूखते पत्तों पे लिखूँ या खिलते गुलाब पे लिखूँ,
आपकी याद लिखूँ या आपका भूलना लिखूँ,
लिखने को कुछ नया आज मिल रहा नही!

सोचता हूँ कि आज क्या लिखूँ?